राइट नम्बर
इस मामले की शुरूआत उस वक्त हुई थी जब मैंने रिलायंस का मोबाइल फोन लिया ही था। शायद तीसरा या चौथा दिन रहा होगा। घंटी बजने पर मेरे हैलो कहने पर फोन करने वाले ने रूबी से बात कराने के लिए कहा। जब मैंने बताया कि ये नम्बर किसी रूबी का नहीं, मेरा है तो सामने वाले ने हैरानी से कहा कि ये कैसे हो सकता है, रूबी ने खुद ही ये नम्बर दिया है और इससे पहले भी इसी नम्बर पर रूबी से बात हो चुकी है। लेकिन मेरे कई बार बताने पर भी सामने वाला शख्स आश्वस्त नहीं लग रहा था। इसके बाद तो अक्सर दूसरे चौथे रोज मेरे मोबाइल पर रूबी के लिए फोन आने लगे। फोन करने वाले जो भी होते, जिद करते कि ये नम्बर रूबी का ही है और वे इस नम्बर पर पहले भी रूबी से बात कर चुके हैं। हद तो तब हो गयी एक बार दिल्ली विजिट के दौरान जब मोबाइल की घंटी बजी तो मेरे हैलो कहने से पहले ही सामने से किसी लडकी की आवाज सुनायी दी, `मम्मी, मम्मी', जब मैंने उसे बताया कि ये उसकी मम्मी का नम्बर नहीं, मेरा नम्बर है, तो वह हैरानी से बोली कि ये कैसे हो सकता है, ये तो मम्मी का ही नम्बर है और ये फोन आपके पास कैसे आ गया। मेरे कई बार समझाने के बाद भी उस लडकी ने अपनी जिद न छोडी और बार बार फोन करके मुझे हैरान करती रही और ख्दा परेशान होती रही। तीन चार बार के बाद उसकी आवाज में रूआंसापन साफ झलकने लगा था। कहने लगी कि उसे मम्मी से तुंत और जरूरी बात करनी है और आप हैं कि बार बार इस नम्बर पर आ जाते हैं। मेरे पास कोई उपाय नहीं था कि उसकी और उसकी मम्मी की आपस में बात करा देता। मैंने जब उससे पूछा कि वह बोल कहां से रही है तो उसने बताया कि लोनावला से। तो इसका मतलब हुआ, जरूर मुंबई और किसी नजदीकी शहर में एक ही नम्बर दो पार्टियों के पास हो सकता है। इस रहस्य से पर्दा तब उठा जब मैंने उससे पूछा कि वह लोनावला गयी कहां से है। उसने बताया पुणे से।
अब जा कर मुझे पूरा मामला समझ में आया कि रूबी को फोन करने वाले इतने आत्म विश्वास के साथ मेरे मोबाइल को रूबी का मोबाइल समझ कर बात कैसे करते थे। पुणे का एसटीडी कोड है 020 और मुंबई का 022, बाकी नम्बर वही। अनजाने में या बिना एसटीडी कोड के सीधे ही नम्बर डायल कर देने से इस बात की पूरी गुंजाइश हो सकती है कि रूबी के लिए फोन मेरे नम्बर पर आते रहे। अगर मेरे नम्बर पर उसके लिए फोन आ सकते हैं तो इस बात की भी तो संभावना हो सकती है कि लोग बाग मुझसे बात करने के लिए रूबी का नम्बर डायल करते रहे हों। मैंने मोबाइल कम्पनी से भी फोन करके पूछा कि ये माजरा क्या है, बार बार मेरे मोबाइल पर किसी रूबी के लिए फोन क्यों आते हैं तो पहले तो वे यही बताते रहे कि ये नम्बर मेरा ही है, लेकिन जब मैंने जोर दे कर कहा कि मुझे बताया जाये कि क्या पुणे में भी यही नम्बर किसी रूबी के पास है तो उन्हने कन्फर्म किया कि हां, पुणे में भी यही नम्बर किसी रूबर्टीना रॉड्रिक्स के नाम पर है, बल्कि ये नम्बर और भी शहर में हो सकता है, फर्क सिर्फ एसटीडी कोड का ही है।
अब मेरी परेशानी कुछ हद तक कम हो गयी थी। उसके लिए अब जो भी फोन आते थे, तो राइट नम्बर या रांग नम्बर की बहस किये बिना मेरे लिए उन्हें बताना आसान हो गया था कि वे मुंबई के एसटीडी कोड के बजाये पुणे का एसटीडी कोड लगा कर यही नम्बर डायल करें, रूबी से बात हो जायेगी।
लेकिन असली किस्सा तब शुरू हुआ जब मैं पिछले दिनों एक सेमिनार के सिलसिले में पुणे में ही था। सेमिनार में होने के कारण मोबाइल वाइब्रेशन मोड में रखा हुआ था। इतने में इनकमिंग फोन का संकेत आया। सामने नजर आ रहा नम्बर मेरे परिचित में से किसी का भी नहीं था। इसलिए फोन एंटैंड करने की कोई जल्दी नहीं लगी मुझे। लेकिन जब बार बार उसी नम्बर से फोन किये जाने के संकेत आने लगे तो मजबूरन मुझे सेमिनार से बाहर आ कर फोन एटैंड करना पडा। फोन रूबी के लिए था। पिछले कई दिन से उसके नाम पर कोई फोन नहीं आया था इसलिए उसका नाम भी दिमाग से उतर चुका था। अचानक उसके लिए फोन आने पर याद आया, `अरे, रूबी भी तो पुणे में ही रहती है और उसका नम्बर भी वही है जो मेरा है।' फिलहाल ज्यादा उत्तेजित हुए बिना या बहस किये बिना मैंने फोन करने वाले से यही कहा कि वह मुंबई के बजाये पुणे के एसटीडी कोड के बाद यही नम्बर डायल करके रूबी से बात कर सकता है।
सेमिनार के चक्कर में रूबी का फिर ख्याल ही नहीं आया लेकिन बाद में इनकमिंग कॉल्स के नम्बर मोबाइल से मिटाते समय मिस्ड कॉल्स में कई बार नजर आ रहे इस अनजान नम्बर को देख कर याद आया कि इस नम्बर से तो रूबी के लिए फोन किया गया था। तो तो क्या, रूबी से बात की जा सकती है। कम से कम यही बताने के लिए कि हम दो अलग अलग शहर में रहते हैं लेकिन हमारी मोबाइल कम्पनी भी एक ही है और हम दोन के नम्बर भी संयोग से एक ही हैं। मैंने पुणे का कोड लगाते हुए रूबी का नम्बर मिलाया। फोन कनेक्ट होने पर मैंने रूबी के लिए पूछा। लाइन पर वही थी। मैंने अपना परिचय दिया और बताया कि किस तरह से हम दोनों के पास एक ही नम्बर है और अक्सर मेरे मोबाइल पर उसके लिए फोन आ जाते हैं। आज अभी थोडी देर पहले ही आपके लिए एक फोन आने पर याद आया कि मैं आप ही के शहर में हूं और संयोग से इस समय पुणे में ही हूं, इसलिए जस्ट हैलो कहने के लिए फोन कर दिया। मेरी बात सुन कर वह बहुत हैरान हुई कि कितना मजेदार संयोग है। उसने यह भी बताया अक्सर उसे फोन करने वाले बताते रहे हैं कि उसके नम्बर के लिए अक्सर रांग नम्बर लग जाया करता था। मैं कुछ और पूछता कि रूबी ने खुद ही कहा कि इस समय वह किसी ऑफिस में है और आधे घंटे बाद तसल्ली से बात कर पायेगी। उसने फोन करने के लिए मेरा आभार माना। नेवर मांइड कह के मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
मैं बेहद रोमांचित महसूस कर रहा था कि क्या तो अजीब संयोग है कि मैं अपने ही फोन नम्बर वाली लेडी से बात कर रहा हूं। अगर परिचय कहीं आगे बढे तो फोन नम्बर याद करना कितना आसान। अपना ही फोन नम्बर। वह बेहद शालीनता से और साफ सुथरी अंग्रेजी में बात कर रही थी।
आधा घंटा बीतते न बीतते उसी की तरफ से फोन आ गया। लेकिन इस बार संकट मेरी तरफ था। मैं अभी भी सेमिनार में था। इसलिए मैंने एसएमएस करके उसे बताया कि फिलहाल मैं व्यस्त हूं। क्या वह बाद में फोन कर सकती है।
बात आयी गयी हो गयी। पुराने यार दोस्त से मिलने और नये परिचित के चक्कर में देर तक याद ही नहीं आया कि रूबी से फोन पर बात करनी है। मोबाइल पर निगाह डालने पर देखा, रूबी की तरफ से एसएमएस था - नेवर मांइड, रूबी। सोचा, अब मैं भी फ्री हूं और हो सकता है, वह भी फ्री हो, मैंने एक बार फिर उसका नम्बर मिलाया। मेरा नाम सुनते ही ढेर सवाल पूछने लगी, `मुंबई में कहां रहते हैं, घर में और कौन कौन हैं, कहां काम करते हैं, किस तरह के सेमिनार में आये हैं, कहां हैं सेमिनार है और कब तक हैं।' बाप रे, उसने तो पहली ही बार में इतने सारे सवाल पूछ डाले। किसी तरह सरसरी तौर पर उसे कुछेक बातें बतायीं और कुछेक गोल कर लीं। किसी को भी फोन पर पहली ही बार में यह बताना कि हम कहां काम करते हैं और घर में कौन कौन हैं, किसी भी तरह से उचित नहीं लगता। न पूछना, न बताना। पूछने लगी कि क्या कर रहे हैं इस वक्त तो बताया मैंने कि बस, जरा शाम के वक्त टहलने के लिए जिमखाना की तरफ जा रहे हैं। अचानक पूछा उसने, `कि आप कब फ्री होंगे और पुणे में कब तक हैं।'
मैं ये सवाल सुन कर हैरान भी हुआ और रोमांचित भी कि ये सवाल उसी की तरफ से पूछा जा रहा है और मैं परेशानी में डालने वाले इस तरह का सवाल पूछने से बच गया। मैंने हिसाब लगाया, सेमिनार कल यानी शनिवार की शाम तक है और मेरी वापसी का कुछ तय नहीं, परस रविवार की दोपहर किसी भी वक्त वापिस जाया जा सकता है। मैंने उसे अपने प्रोग्राम के बारे में बताया। तभी उसने बताया कि वह बाद में फोन करेगी।
अच्छा भी लगा और हैरानी भी हुई कि दो दिन के लिए पुणे आना हुआ और एक बिल्कुल नये किस्म का परिचय होने जा रहा है। मुलाकात न भी हो, कम से कम फोन पर तो बातचीत का सिलसिला बना ही रह सकता है। ये तो तय है कि वह एक युवा लडकी की मां है। जिस तरह से उसकी लडकी ने मुझसे बात करते हुए बताया था कि वह मम्मी से बात करना चाहती है, आवाज और अंदाज से तो यही लग रहा था कि वह लडकी अपनी सहेलियों के साथ लोनावला घूमने आयी होगी। कॉलेज वाली लडकी यानि सत्रह अट्ठारह बरस की उम्र और इस हिसाब से रूबी की उम्र होगी यही कोई चालीस के आस पास।
रात साढे नौ बजे फोन आया उसका। वह इधर उधर के ऐसे सवाल पूछती रही जो आम तौर पर लोग नये परिचय के वक्त पूछते ही हैं। फोन रखते समय उसने कहा, `टेक केयर डीयर, कल बात करेंगे।' पिछले आठ घंटे के दौरान हमारे बीच चार बार बात हुई थी।
शनिवार सारा दिन सेमिनार की भेंट चढ गया। याद तो था कि रूबी से बात करनी है लेकिन जब भी मैंने फोन किया, उसने एकाध वाक्य के बाद ही कह दिया कि वह बाद में खुद फोन करेगी। मैंने भी कोई उतावली नहीं दिखायी और अपने यार दोस्त में ही व्यस्त रहा। उसकी तरफ से भी कोई फोन नहीं आया। एकाध बार मुझे याद आया भी होगा तो फुर्सत नहीं रही।
जिस वक्त उसका फोन आया तब हम रात के खाने के लिए डाइनिंग हॉल की तरफ जा ही रहे थे। पूछने लगी, `कैसा रहा दिन और कैसी रही शाम, कहां गये थे घूमने आज? मैंने बताया कि आज तो दिन भर बेहद बिजी रहे और शाम को यूं ही बस, आस पास ही टहलते रहे और कुछ खास नहीं किया।
अचानक उसने पूछा, `कुछ ड्रिंक वगैरह लिया या नहीं? मैं उसके इस सवाल पर हैरान हुआ कि किस तरह की लेडी है, सारा लेखा जोखा बिन मिले ही जान लेना चाहती है।
मैंने उसे बताया कि शाम तो ठीक ठाक रही लेकिन ड्रिंक इसलिए नहीं लिया क्यकि मैं जिन दोस्त के साथ था, उनमें से कोई भी पीने वालों में से नहीं था। अब अकेले फिर बाजार जा कर अपने लिए कुछ लाने की तुक नहीं लगी।
`क्या पीते हैं आप? पूछा उसने।
`वैसे तो बीयर लेता हूं लेकिन ड्रिंक्स में वोदका ही पसंद करता हूं।' बताया मैंने।
तभी वह बोली, `मुझे भी वोदका पसंद है हालांकि इधर कई दिन से मौका ही नहीं बन पाया है।'
मैं हैरान हुआ कि अरे ये तो अच्छी खासी मॉड लेडी है। ड्रिंक्स भी लेती है और जानकारी भी रखती है। अभी तो हमारी मुलाकात भी नहीं हुई थी और हमारा परिचय मात्र चार पांच फोन कॉल पुराना है फिर भी उसकी तरफ से इस तरह के सवाल मुझे हैरानी में डाल रहे हैं।
`और क्या पसंद है आपको ? बात आगे बढाने की नीयत से पूछा मैंने।
`बहुत कुछ पसंद है वैसे तो लेकिन, उसने ठंडी सांस भरी है, `जिंदगी है कि कुछ एन्जाय ही नहीं करने देती।'
`ऐसा क्या हो गया?
`क्या बतायें, जाने दीजिये।' उसने टालना चाहा है।
मैंने उसके मूड को देख कर बातचीत का रूख बदलने की नीयत से पूछा है, `क्या करती हैं आप?'
`मैं इस्टेट कन्सलटैंट हूं। बडी बडी कम्पनियों के लिए लीज्ड फ्लैट्स का इंतजाम करती हूं।'
`ऑफिस कहां है आपका?'
`मैं घर से ही आपरेट करती हूं।'
`काफी क्लायंट्स होंगे आपके और घूमना भी बहुत पडता होगा आपको?'
`हां, काम ही ऐसा है कि सारा दिन घर से बाहर रहना पडता है। खैर, मेरी जाने दीजिये, अपने बारे में कुछ बताइये', कहा है उसने।
मैंने टालना चाहा है,` ऐसा कुछ भी नहीं है बताने लायक मेरे पास। कभी मिले तो बता भी देंगे।' मैंने टोह लेनी चाही है।
`क्या हम आपसे मिलने आ सकते हैं ?' ये उसकी तरफ से सीधा और साफ सवाल था और पूछने में किसी भी तरह का संकोच नहीं था।
`हां हां, श्योर जब आप चाहें।' अब मैं घिर चुका था।
`कब?'
`ऐसा कीजिये, कल दिन में तो मैं चला जाऊंगा, दो एक लोग से मिलने का भी तय कर रखा है। आप एक काम कीजिये, सवेरे बेकफास्ट हमारे साथ लीजिये।'
`कितने बजे?'
`यही कोई साढे आठ के करीब।'
`ठीक है मैं थोडी देर में कन्फर्म करके बताती हूं,,'
बाद में उसने कन्फर्म किया, `बेकफास्ट पर ठीक साढे आठ बजे आ जायेगी। लेकिन दस मिनट बाद ही उसका फिर से फोन आ गया, `सुबह तो आना नहीं हो पायेगा, ऐसा करते हैं, मैं दस बजे के आपस पास आऊंगी, आपसे खूब बातें करेंगे, वी विल हैव सम नाइस टाइम टूगेदर, आप का मूड होगा तो थोडी सी वोदका भी ले लेंगे और लंच हम एक साथ लेंगे।' उसने सारे फरमान एक साथ सुना दिये हैं।
`ओह श्योर, मैं आपका दस बजे इंतजार करूंगा।' मैंने उसे गेस्ट हाउस का पता और लोकेशन बता दिये हैं।
मैं हैरान भी हूं और रोमांचित भी। कोई महिला भला बिना मिले किसी के गेस्ट हाउस में आकर खुद गप शप करने, वोदका पीने और लंच या साथ लेने का प्रोग्राम कैसे बना सकती है। सबसे ज्यादा मुझे परेशानी उसके इस वाक्य से हो रही है जो उसने हंसते हुए कहा है कि वी विल हैव सम नाइस टाइम टूगेदर।
क्या मतलब हो सकता है इस वाक्य का। वह दस बजे आयेगी, हम वोदका पीयेंगे, दो पैग ...तीन पैग। आखिर दिन में पीने की और वह भी एक अनजान औरत के साथ पहली ही मुलाकात में पीने की एक सीमा हो सकती है और होनी भी चाहिये। उसका ये कहना कि लंच एक साथ लेंगे, लंच लेने गये भी तो एक ड़ेढ बजे ही जा पायेंगे। इसका मतलब वह तीन चार घंटे यहां बिताने की नीयत से आ रही है। शादी शुदा और एक बच्ची की मां तो वह है ही, घर में और लोग बाग भी होंगे, मुंबई में तो कोई भी घर परिवार वाला आदमी रविवार का दिन अपने परिवार के बीच ही बिताना चाहता है, और यहां तो ये अनजान मोहतरमा का मामला है जो मेरे साथ तीन चार घंटे गपशप करने, वोदका पीने और कुछ अच्छा वक्त बताने की नीयत से आ रही है। समझ में नहीं आ रहा, इस सारे जुमले का क्या मतलब निकालूं।
कहीं कोई ऐसी वैसी औरत न हो। मतलब लाइन से उतरी हुई जो किसी न किसी बहाने शिकार तलाशने की फिराक में रहती हो, लेकिन कल तक तो वह मुझे जानती भी नहीं थी और पहला फोन भी मैंने किया था। भला इस तरह से किसी को अपने चंगुल में कैसे फंसाया जा सकता है। बातचीत से तो भले घर की महिला लग रही है। एक अनजाना सा डर भी लग रहा है कि कहीं किसी जाल में न फंस जाऊं। लेकिन अपने आप को तसल्ली देता हूं कि मैं कोई छोटा बच्चा थोडे ही हूं और न ही वह कोई जादूगरनी ही है जो मुझे देखते ही मेढा बना डालेगी। आखिर जिंदगी में पहली बार तो किसी अनजान औरत से नहीं मिल रहा हूं। फिर मैं अपने गेस्ट हाउस के कमरे में ही तो होऊंगा। अपनी जगह पर होने की एडवांटेज तो मुझे ही मिलेगी। बस, एक काम और बढ गया बैठे बिठाये। अब मुझे बाजार जा कर वोदका वगैरह का इंतजाम करना पडेगा।
पता नहीं क्या वजह रही होगी कि रात भर सिर दर्द के कारण सो ही नहीं पाया। कई बार उठा, सिर पक़ड कर बैठा रहा लेकिन कुछ सूझा ही नहीं कि क्या करूं। मुझे ये भी पता नहीं था कि मेरे आस पास के कमर में कौन टिके हुए हैं। और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी कि उनके पास सिर दर्द की गोली मिल ही जाये। सवेरे पांच बजे के आस पास ही नींद आ पायी होगी।
सवेरे डाइनिंग हॉल में बेक फास्ट के समय सबसे मिलते समय मुझे इस बात की बहुत तसल्ली हुई कि अच्छा हुआ कि रूबी ब्रेक फास्ट के टाइम नहीं आयी, नहीं तो इतने लोग को जवाद देना भारी पड जाता।
डाइनिंग हॉल में ही एक साथी से सिर दर्द की गोली ली और कमरे में आ कर लेट गया। हालांकि ज्यादातर साथियों की फ्लाइट में अभी समय है और सबका आग्रह भी है कि थोडा सा वक्त तो उनके साथ गुजारूं, फिर पता नहीं कब मिलना हो, लेकिन मुझे आराम की सख्त जरूरत है, इसलिए सबसे माफी मांग कर गोली खा कर कमरे में आ कर लेट गया हूं। अभी पौने नौ ही बजे हैं और रूबी के आने में अभी कम से कम एक ड़ेढ घंटा बाकी है। इतनी देर में मैं रात की बकाया नींद में से थोडी सी तो पूरी कर ही सकता हूं।
मेरी नींद पौने ग्यारह बजे खुली। मोबाइल बज रहा है। पत्नी का फोन है। पूछ रही है वापिस आने का क्या प्रोग्राम है। मैंने उसे बताया है कि रात सिरदर्द की वजह से सो नहीं पाया हूं। अभी सो रहा हूं। तीन बजे के आस पास की बस ले कर आ जाऊंगा।
अचानक याद आया कि इस समय तक तो रूबी को आ जाना चाहिये था। पता नहीं आ भी रही है या नहीं। पत्नी के फोन से यह भी ख्याल आया कि कहीं मैं अपनी पत्नी से बेईमानी तो नहीं कर रहा हूं। फिर अपने आप को खुद ही तसल्ली दे दी है कि इसमें बेईमानी कहां से आ गयी। कोई भली महिला मुझसे मिलने आ रही है। हां, यह जरूर है कि वह चाय कॉफी के बजाये वोदका पीयेगी। बस, और क्या। इसमें बेईमानी कहां से आ गयी। हम दो भले आदमियों की तरह मिलेंगे, बात वात करेंगे और उसके बाद वो अपनी राह और मैं अपनी राह। मैंने सोचा जब तक रूबी आये, एक झपकी और ली जा सकती है। क्या पता न ही आये। आना होता तो अब तक आ जाती।
इंटरकॉम की कर्कश आवाज से फिर नीद खुली। रिसेफ्शन से फोन है, `कोई मैडम आपसे मिलने आयी हैं।'
वक्त देखा - बारह दस हो रहे हैं।
बताया मैने, `भेज दो और गाइड कर दो ताकि कमरा खोजने में उन्हें तकलीफ न हो।'
तो आखिर आ ही गयी रूबी मैडम। दिल में धुकधुकी हो रही है कि देखने में, व्यवहार में कैसी होगी और कैसे वो पेश आयेगी और कैसे मैं पेश आऊंगा। अपनी धडकन पर काबू पाने के लिए मैं पूरा गिलास पानी पीता हूं। बिना जरूरत बाथरूम जा रहा हूं।
दरवाजे पर नॉक हुई है।
रॉंग नम्बर
मैंने धडकते दिल से दरवाजा नॉक किया है। दरवाजा खुला है। मेरे सामने जो मर्द ख़डा है, पचास बावन साल के आस पास का है। स्मार्ट लग रहा है। कुर्ते पैंट में है। पर्सनैलिटी से लग रहा है, बडा अफसर होगा।
मुस्कुरा कर उसने मेरी तरफ हाथ बढाया है लेकिन मैंने जानबूझ कर मुस्कुराते हुए हाथ ज़ोडे हैं और भीतर आयी हूं। कमरे का जायजा लेती हूं। एसी, टीवी, फोन, कार्पेट, बढिया फर्नीचर। मतलब किसी ऊंची पोस्ट पर जरूर होगा। मेज पर रखी वोदका की फुल बॉटल, स्नैक्स और लाइम कार्डियल। इसका मतलब बुढऊ ने पूरी तैयार कर रखी है। आज मुझे निराश नहीं होना पडेगा। बेचारा दो घंटे से मेरी राह देखते देखते थक गया होगा।
`वेलकम रूबी,' मेरा स्वागत किया है उसने और पूछा है,`देर कहां हो गयी आपको। आप तो दस बजे आने वाली थीं।'
`क्या बताऊं। एक पार्टी के पास जाना पड गया। चेक कलेक्ट करना था उनसे। पूरा एक घंटा बैठी रही।' मैंने शुरूआत ही झूठ से की है और ठंडी सांस भरते हुए बात पूरी की है, `तब जा कर चेक मिला।' अब मैं इस आदमी को कैसे बताऊं कि उसे दो घंटे इंतजार कराने के चक्कर में ही मैं साढे ग्यारह बजे घर से निकली हूं। पार्टी को जितना इंतजार कराती हूं, उतना ही मीठा फल मिलता है। और अगर आदमी इसी उम्र का हो तो पता नहीं मेरे आने तक कितने सपने बुन लेता है। हर तरह के सपने और इन्हीं सपनों की कीमत वसूलती हूं। वैसे भी मुझे पता था अपने गेस्ट हाउस के कमरे से निकल कर बेचारा कहां जायेगा?
`फिर तो आज आप बहुत अमीर हो गयीं?' पूछ रहा है।
`अरे नहीं सर, मेरी नयी कम्पनी के नाम से चेक दिया है पार्टी ने। पहले तो इस कम्पनी के नाम से एकाउंट खोलना होगा। तब जा कर चेक जमा कर पाऊंगी। एक वीक तो लग ही जायेगा।' मैंने पहला दाना डाला है। लेकिन एक बात माननी पडेगी। घाघ लग रहा है।
`पानी पीयेंगी आप?' मेरे थके चेहरे की तरफ देख कर पूछा है उसने?
`यर सर, पानी तो पीऊंगी।'
पानी दिया है उसने। मैंने पूरी अदायें दिखाते हुए, पसीना पछते हुए और रूमाल लहराते हुए पानी लिया है और अब सोफे पर आराम से बैठ गयी हूं। और उसे ये दिखाने के लिए कि मैं उसमें और उसके पूरे माहौल में दिलचस्पी ले रही हूं, मैं कमरे को एक बार फिर देख रही हूं।
वह हैरानी से मुझे देखे जा रहा है।
पूछ ही लिया है उसने, `क्या देख रही हैं आप?'
`इस कमरे का तो बहुत ज्यादा किराया होगा?' मेरे सवाल के जवाब में वह अपने पलंग पर तकिये का सहारा ले कर आराम से पसर गया है।
`नहीं, हमें किराया नहीं देना पडता। ये हमारे ही ट्रेनिंग इंस्टीटयूट का गेस्ट हाउस है। नॉन एसी कमरे भी हैं लेकिन हमारे लेवल के ऑफिसर्स के लिए सारे कमरे ऐसे ही हैं।'
`खाने का क्या एरेंजमेंट है?'
`डाइनिंग हॉल है। खाने का इंतजाम वहां है। बस, हमारे एलांउसेसस से थोडे पैसे काट लेते हैं रहने खाने के।'
मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि एलांउसेसस से थोडे पैसे काट कर इतनी अच्छी सुविधा मिल सकती है।
`वोदका पी जाये?' मेरी बेचैन निगाह को रोकते हुए पूछा है उसने।
`ओह श्योर,' कहा है मैंने, 'दरअसल, पहले हमारा कैटरिंग का ही बिजिनेस था।' मैंने चुग्गा डालना शुरू किया है, `हमारे पास कई कम्पनियां थीं, पचास साठ का स्टाफ था लेकिन सब कुछ ठफ्प हो गया। मेरे हसबेंड को पेरेलिसिस हो गया और सब खत्म हो गया।' मैंने उसके हाथ से वोदका का गिलास ले कर अपने दोनों हाथ में घुमाते हुए कहा है। इस्टेट एजेंसी, कन्सलटेंसी, कैटरिंग वगैरह ऐसे काम हैं जिनके बारे में जी भर कर झूठ बोला जा सकता है और पहली मुलाकात में तो इन काम के जरिये मैं अपनी अच्छी खासी इमेज बना लेती हूं। मेरे आगे के सारे कदम आसान हो जाते हैं। देखें, ये जनाब कितनी देर में लाइन पर आते हैं।
`वेरी सैड, ये तो बहुत बुरा हुआ।' उसने अफसोस जताया है। आदमी लाइन पर लाया जा सकता है। मेरी कहानी उसे उदास कर दे, यही तो मैं चाहती हूं।
`मैं आपको अपनी कम्पनी के क्लायंट्स की लिस्ट दिखाती हूं कितनी लम्बी लिस्ट थी।' मैंने गिलास रख कर अपने पर्स में से कागज खोजने का नाटक करना शुरू किया है। ऐसे मौक पर बहुत बडा पर्स रखना कितना अच्छा रहता है जिसमें ढेर कागज, विजिटिंग कार्ड वगैरह ठुंसे हुए हों। कुछ भी ढूंढने का नाटक करते रहो, फिर कोई बीच में ही और कोई बात शुरू करके ढूंढना अधबीच में ही छोड दो। यही किया है मैंने। अब बता रही हूं उसे कि हसबेंड के इस तरह से बैड रिडन होने के कारण सारा काम मुझे ही करना पडता है। अब मैंने पर्स में से रूमाल निकाल लिया है। हाथ में रूमाल हो तो आंख के पास रूमाल बार बार ला कर रोने का नाटक बेहतर तरीके से हो सकता है। मैंने बात आगे बढायी है, `अब तो सब कुछ मेरे ही हाथ में है। हर तरह के काम कर लेती हूं मैं। प्फ्लेसमेंट का काम भी करती हूं। पुणे में सर, आप जानते हैं कि एडमिशन मिलना कितना मुश्किल होता है। अभी मैंने एक बच्चे का एडमिशन कराया। तीन हजार का चेक मिला मुझे। मैं दिखाती हूं आपको।' मैंने एक बार फिर खोजने का नाटक किया है।
अचानक चेक खोजना छोड कर पूछा है उनसे मैंने, `आपके इस इंस्टीटयूट का कैटरिंग कांट्रैक्ट मुझे मिल सकता है क्या? मेरी फैमिली को बहुत बडा सहारा हो जायेगा।`
उसने मेरी तरफ देखा है मानो मुझे तौल रहा हो। वह जिस तरह की निगाह से मुझे देख रहा है, कहीं उसे पता तो नहीं चल गया कि मैं क्या हूं और किस मकसद से आयी हूं। लगता तो नहीं कि इसे बिस्तर तक ले जा सकूंगी। इमोशनल ब्लैकमेलिंग भी पता नहीं चलेगी या नहीं। पता नहीं आज काम भी हो पायेगा या नहीं।
उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया है और अपना गिलास दोबारा भरा है। मेरे गिलास का तरफ देखा भी नहीं कि खाली है या नहीं। मुझे बेहद भूख लगी है। सुबह से कुछ खाया नहीं है। स्नैक्स ही तसल्ली से खा रही हूं।
`ये कहना तो बहुत मुश्किल है कि आपको इंस्टीटयूट का कैटरिंग कांट्रैक्ट कैसे मिल सकता है लेकिन मैं आपको यहां के मैनेजर का कांटैक्ट नम्बर वगैरह दे देता हूं। आप बाद में खुद चेक कर लेना।' आखिर कहा है उसने।
`श्योर, मैं उन्हें आपका रेफरेंस दे दूं?' मैंने चेहरे का रंग बदला है और अपने चेहरे पर हंसी लाने की कोशिश की है। जो कुछ करना है जल्दी करना होगा।
`हां कोई दिक्कत नहीं, आप बता दीजिये मेरा नाम।'
अब ये नई मुसीबत, मैंने अब डायरी और पैन खोजने के लिए फिर से पर्स खंगालना शुरू किया लेकिन अधबीच में ही छोड कर उससे पूछा है,`आप बॉम्बे के ही रहने वाले हैं क्या?'
`नहीं, मैं राजस्थान का रहने वाला हूं। मुंबई में तो नौकरी की वजह से हूं।'
`घर में और कौन कौन हैं?' मैंने उनकी टोह लेनी चाही है।
टाल गया है मेरा सवाल। फिर अपने गिलास के साथ साथ मेरे खाली गिलास में वोदका डालने लगा है। मैंने देखा है कि उसने मुझसे भी ज्यादा तेजी से अपना गिलास खाली किया है, जबकि मैं खुद ज्यादा अपनी नार्मल स्पीड से ज्यादा तेज पी रही हूं आज।
अब पूछ रहा है, `आपको तो अपने काम के सिलसिले में काफी घूमना पडता होगा। तरह तरह के लोगों से मिलना पडता होगा।'
`हां, हर तरह के लोग से मिलने जाना पडता है। हर तरह के एक्सपीरिंएस होते हैं। लेकिन लोग हमेशा मेरी मदद करते हैं। काम मिलता रहता है। अभी परसों ही एक बडी कम्पनी की एक लडकी को पेइंग गेस्ट एकोमोडेशन दिलवाया। एक महीने रेंट मिला मुझे। पता है आपको सर, यहां एस्टेट एजेंट दो महीने का रेंट मांगते हैं लेकिन मैं सिर्फ एक ही महीने का लेती हूं। नया काम है ना। अभी नये नये क्लायंट्स बनाने हैं।'
अब मैं इसे कैसे बताऊं कि कैसे कैसे पापड बेलने पडते हैं मुझे इस धंधे में। असली धंधे में। मुझे तो बस, पैसे से मतलब है जैसे भी मिलें। कई बार इतनी मेहनत करने के बाद भी कुछ हाथ नहीं आता। पिछली बार कितनी मेहनत से भारत फोर्ज कम्पनी के उस बुड्ढे मैटेरियल मैनेजर पगारे को लाइन पर लायी थी। सोचा था लम्बी पारी खेलूंगी उसके साथ और किस्तों में उसे खुश करती रहूंगी। दस चक्कर कटवाये उसने तब जा कर कुछ बात बनी थी। मैं चाहती थी कि जो कुछ करना है, करे लेकिन काम तो करे मेरा। पूरा काम मिल जाता तो कम से कम तीस हजार बचते। लेकिन न हाथ रखता था न रखने देता था। आखिर में मुझे यही हसबेंड के बेड रिडन होने की कहानी सुनानी पडी तो मेरे कंधे पर हाथ रख कर सीरियस हो कर बोला था, यू आर लाइक माई यंगर सिस्टर, आइ विल डेफिनेटली हेल्प यू। लेकिन जब आर्डर देने का वक्त आया तो यही बुड्ढा एडवांस पन्द्रह पर्सेंट की मांग करने लगा। सीधे मुंह पर ही मांग लिया। नो रिलेशंस इन बिजिनेस। आपको सिस्टर बोला तो काम भी तो कर रहा हूं। कहां से देती मैं। होते तो देती भी। जब सिस्टर बना लिया तो सैक्स से थोडे ही मानने वाला था। बिस्तर पर आता तो फिफ्टीन पर्सेट कैसे मांगता। हलकट कहीं का। मेरे पांच सात दिन बरबाद किये।
`हां सो तो है, किसी भी नये काम में ये सब तो करना ही पडता है।' दार्शनिक अंदाज में बोल रहा है।
अचानक उसने ये सवाल पूछ कर जैसे मुझे एकदम नंगा ही कर दिया है, `एक बात बताइये रूबी, मैं कल से इस बारे में सोच रहा हूं।'
अब गये काम से। पता नहीं क्या पूछ बैठे। कहीं इसे मेरी असलियत तो पता नहीं चल गयी।
`पूछिये न सर,' मैंने डरते डरते कहा है।
`आप पहली बार मुझसे मिलने आ रही थीं और आपने मुझसे मिले बिना ही मेरे साथ ड्रिंक लेने का प्रोग्राम बना लिया। आम तौर पर लेडीज से इतनी बोल्डनेस की उम्मीद नहीं की जाती। आइ मस्ट से, यू आर रियली बोल्ड एंड स्ट्रेट फारवर्ड पर्सन।'
आखिर घेर ही लिया कम्बख्त ने। जरा भी ऐसा नहीं लगा इसे ये कहते हुए कि ये बात किसी लेडी से कैसे कही जा सकती है कि आपके आने का मकसद क्या है। हद है। जरा तो सोचता, मुझे खराब लग सकता है। अब तो मेरे सारे दांव बेकार जा रहे हैं। क्या जवाब दूं इसका। इसका मतलब, अब मैं चाह कर भी इसे बिस्तर तक नहीं ले जा सकती। कैसे कहूं कि मैं इसी मकसद से आयी थी कि कैसे भी करके हजार पांच सौ झटक सकूं। यही मेरा पेशा है और यही मेरा तरीका है। मैं कैसे बताऊं इसे कि मैं कोई भी कांटैक्ट बेकार नहीं जाने देती। इंश्योरेंस एजेंट की तरह। दिन दिन भर भटकती रहती हूं और लच्छेदार बात में लोगों को बेवकूफ बना कर अपना काम निकालती हूं। एक एक आदमी को टटोलती हूं। धोखे भी खाती हूं और कई बार एक पैसा पाये बिना लुट कर भी आती हूं। लेकिन यही काम है मेरा तो कैसी शर्म इसमें। लेकिन आपका मामला अलग है जनाब। आप ही ने तो पहला फोन किया था, भला मैं इतना अच्छा मौका हाथ से कैसे जाने देती।
मैंने इस बात का जवाब देने में भरपूर वक्त लिया है और अपने चेहरे का रंग बदला है, सोफे से ख़डी हो गयी हूं, और घूम कर पूरे कमरे का एक चक्कर लगाया है। टीवी ऑन करके ऑफ किया है और फिर चल कर उसके पलंग के पास आयी हूं। पलंग पर अभी भी पसरा लेटा है वह। मेरे एकदम निकट आने से चौंक गया है। घबरा कर पीछे हटा है कि पता नहीं क्या करने मैं उसके इतने निकट आ गयी हूं। मैंने उसकी आंखों में झांका है।
अचानक ही मेरा मोबाइल बजा है। धत् इसे भी इसी वक्त ही बजना था। मैं वापिस सोफे तक आ गयी हूं। फोन उठा कर देखा है और इन्कमिंग कॉल का नम्बर देख कर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया है। हसबेंड का है। जरा भी चैन नहीं लेने देते। जरा घर से बाहर निकली नहीं कि फोन पर फोन।
इस बार मैं उसके नजदीक नहीं गयी हूं और सोफे पर बैठते हुए बोली हूं, `सर, मुझे विश्वास था कि आप भले आदमी हैं इसीलिए मैं आपसे मिलने आयी हूं। मुझे पता है आप सर, आप इतने बडे ऑफिसर हैं, मेरे साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं ही करेंगे। हाई हैव फेथ इन यू सर।'
`कमाल है। बिना मिले ही मुझ पर इतना भरोसा?' उसका मूड बदला है।
`सर, मैंने भी दुनिया देखी है, फोन पर बात करते हुए भी हमें पता चल जाता है कि कौन कैसा है और किसके पास जाना चाहिये। आप मेरे पहले दोस्त हैं सर जिनसे फोन के जरिये परिचय हुआ है। और मुझे पता है मैं आपके पास बिलकुल सेफ हूं। लाइक एक ट्रू फ्रेंड।' मैं पता नहीं क्या क्या बोले जा रही हूं। अब मुझे सारे खेल को तुरंत बदलना होगा। सैक्स इस नाउ आउट। सीधे सीधे मदद मांगनी ही होगी। और कोई तरीका नहीं है।
आखिर मैंने कह ही दिया है, `सर, लेकिन मुझे आपकी मदद चाहिये।'
`बोलिये रूबी, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?'
अब वह भी समझ रहा है कि कुछ ऐसा घटने जा रहा है जिसके बारे में उन्हें पहले से तैयार रहना चाहिये था।
`मुझे कल अपने बेटे का नाइन्थ में एडमिशन करना है और मुझे वन थाउजेंड रूपीज चाहिये। मेरे पास तीन चार चेक हैं लेकिन आपको बताया ना, सर, एकाउंट पेयी हैं सारे और मेरी नयी कम्पनी है। कम्पनी का एकांउट खुलवाना ही भारी पड रहा है। जब भी आप अगली बार आयेंगे, मुझे सिर्फ एक दिन पहले फोन कर देंगे तो मैं जहां कहेंगे मैं पूरे पैसे साथ ले आ जाऊंगी। आप तो यहां आते रहेंगे सर। अब तो इस नयी फ्रेंड की खातिर भी आपको आना होगा। आयेंगे न सर? मेरी खातिर।'
`लेकिन डीयर, मैं जितने पैसे लाया था, ज्यादातर तो खर्च कर दिये हैं।' वह बता रहा है, `ये आफिशियल ट्रिप थी इसलिए ज्यादा लाया भी नहीं था। मेरे पास मुश्किल से पांच सौ होंगे। ढाई सौ बस के लिए और पचास के करीब ऑटो के लिए। रीयली सॉरी रूबी, मुझे कल भी बता दिया होता तो।'
`सर आज वाली पार्टी ने कैश देने के लिए कहा था लेकिन एकाउंट पेयी चैक दे दिया है।'
ये तो दिक्क्त हो गयी। बुड्ढा खाली हाथ टरकायेगा क्या। साथ ही डर भी लग रहा है कि कहीं चेक दिखाने के लिए ही न कह दे। मैंने इतने सारे चेकों का जिक्र कर तो दिया है और पर्स में चेक तो क्या बीस रुपये भी नहीं हैं।
`वो तो ठीक है, लेकिन मेरे पास सचमुच नहीं हैं। ये दो ढाई सौ हैं, अब अगर इनसे तुम्हारा काम चलता हो।'
ये तो पूरा घाघ निकला। अगर बिस्तर तक भी ले जा सकती तो शायद बात बन जाती। कुछ तो निकालता। अब तो गयी बाजी हाथ से। दो सौ से क्या बनेगा। शायद कुछ और निकालने को तैयार हो जाये। लेकिन ज्यादा से ज्यादा तीन सौ दे देगा। जब इतने ही मिलने हैं तो और वक्त बरबाद क्यूं करूं। इतने ही ले कर चैफ्टर को यहीं क्लोज करती हूं।
मैंने झट से कहा है,`सर, आप कितने बजे जायेंगे ?'
उसने घडी देखी है, `इस समय एक पैंतीस हो रहे हैं, यही कोई तीन चार के बीच। क्यों?'
`एक काम करती हूं मैं, थोडी देर के लिए जा रही हूं। बस, गयी और आयी, फिर आराम से बातें करेंगे। एक और पार्टी से दस मिनट का काम है, बस मिलना भर है। मैं वापिस आ ही रही हूं। आप आठ बजे के करीब चले जाना।'
`लेकिन आठ बजे जाने से तो मैं रात बारह बजे घर पहुंच पाऊंगा। बहुत देर हो जायेगी।'
`नहीं होगी देर सर, मैं बस, गयी और आयी, आप मेरी राह देखना। बहुत जरूरी काम है। मुश्किल से बीस मिनट लगेंगे।'
`लेकिन रूबी, आपके पास वैसे भी पैसे की कमी है, ऑटो में जाने आने के सौ डेढ सौ क्यों खर्च करती हैं ?'
`आप हैं न सर, मुझे किस बात की चिंता।' मैंने हंस कर उसका विश्वास जीतने की आखिरी कोशिश है। शायद बुड्ढा रोक ले।
`लेकिन कहा न मैंने, मेरे पास इतने ही हैं। उसने सचमुच जेब से दो सौ रुपये निकाल कर मेरे सामने कर दिये हैं।'
मैंने उसके हाथ से रुपये ले लिये हैं और उसे आश्वस्त करते हुए कहा है, `आप मेरी राह देखना सर, मैं गयी और आयी। मैं आपके साथ ढेर सारी बातें करूंगी, हम एक साथ डिनर लेंगे और मैं आपको बस स्टैंड तक खुद छोडने आऊंगी। वेट फार मी सर, जस्ट हाफ एन हावर।'
और मैं कमरे से बाहर हो गयी हूं।
राइट नम्बर
मुझे पता है, रूबी अब कभी वापिस नहीं आयेगी। फोन भी करूंगा तो मेरा नम्बर देखते ही डिस्केनक्ट कर देगी।
जाते जाते उसने मुझसे पूछा कि क्या वह बोतल में बची हुई वोदका ले जा सकती है।
मैंने वोदका की बोतल और नमकीन का पैकेट खुद ही उसे थमा दिये थे।
Monday, March 10, 2008
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1 comment:
सूरज जी
हमेशा की तरह लाजवाब कहानी. आप की कहानी का प्लोट और प्रवाह इतना सशक्त होता है की पाठक बिना इसे एक साँस में खत्म किए छोड़ नहीं सकता. ये विधा बहुत तपस्या से मिलती है. मेरी हार्दिक बधाई.
नीरज
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