Friday, August 29, 2008

बाइसवीं कहानी रचनाकार.ब्‍लागस्‍पाट पर

मित्रो
आदान प्रदान योजना के तहत मेरी लम्‍बी कहानी देश, आज़ादी की पचासवीं वर्षगांठ और एक मामूली सी प्रेम कहानी आप रचनाकार.ब्‍लागस्‍पाट पर पढ़ें. लिंक यहां दे रहा हूं. मेरे अपने ब्‍लाग पर रचनाएं आती रहेंगी
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सूरज

Thursday, August 21, 2008

इक्‍कीसवीं कहानी - घर बेघर

घर बेघर

लंदन से महेश आया हुआ है। यारी रोड का अपना मकान खाली कराने के लिए। दो बरस पहले जब वह हमेशा के लिए लंदन बसने के इरादे से बंबई से गया था वो एक भरोसेमंद एजेंट की मार्फत एक बरस के लिए अपना मकान एक मलयाली को दे कर गया था। तय हुआ था कि वह ठीक एक साल बाद मकान खाली कर देगा। और भी कुछ वायदे किये थे उसने, मसलन वह महेश की सारी डाक एस्टेट एजेंट के पास पहुँचाता रहेगा जो उसे किसी न किसी जरिये से लंदन भिजवाने का इंतजाम करने वाला था। सारे बिल अदा करेगा और सोसाइटी चार्जेज वक्‍त पर अदा करेगा। लेकिन उसने कोई भी वायदा पूरा नहीं किया था। न डाक भिजवायी थी, न टेलिफोन बिल अदा किये थे, न ही सोसायटी चार्जेज टाइम पर दिये थे। और तो और, बीच–बीच में बिल अदा न किये जाने के कारण दो तीन बार बिजली भी कट चुकी थी।
उससे यह भी तय हुआ था कि वह मकान का किराया नियमित रूप से महेश की तरफ से एजेंट को देता रहेगा, लेकिन किराया भी उसने छः सात महीने का ही जमा कराया था।
महेश बता रहा है कि उसने किरायेदार को कई पत्र लिखे, संदेश भिजवाये लेकिन किसी भी तरह से वह पकड़ में नहीं आया। कई बार फोन करने पर एक आध बार जब वह पकड़ में आया भी तो गिड़गिड़ाने लगा कि छः महीने की मोहलत और दे दो। छः महीने पूरे होते ही वह मकान खाली कर देगा। सारे पेमेंट भी कर देगा और किसी भी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा।
लंदन में बैठे हुए महेश के पास इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था क्योंकि इस बीच उसका एजेंट भी अपनी दुकान बंद करके वहां से गायब हो चुका था और किरायेदार से कम से कम सात महीने का किराया भी ले जा चुका था। ये वही एजेंट था जो महेश के लंदन जाते समय आधी रात को अपनी वैन ले कर आया था और उसका सारा सामान लाद कर एयरपोर्ट ले गया था। महेश को विदा करते समय वह महेश के गले लग कर फूट–फूट कर रो रहा था और टेसुए बहा रहा था कि आप जैसा खरा और जिंदादिल इंसान मैंने जिंदगी में नहीं देखा। और यही एजेंट अपना बोरिया–बिस्तर समेट कर चंपत हो चुका था।
महेश बता रहा है कि लंदन से चलने से पहले उसने किरायेदार को दसियों बार फोन करके अपने आने की सूचना दे दी थी कि वह सिर्फ मकान खाली कराने के मकसद से ही आ रहा है और उसका यहाँ और कोई काम नहीं है। इसलिए वह जैसे भी हो, मकान खाली रखे ताकि उसे यहाँ बेकार में रुकना न पड़े। किरायेदार के ही कहने पर महेश ने यहाँ आने की तारीख दो बार बदली। जब भी महेश ने उसे बताया कि मैं आ रहा हूँ, किरायेदार ने कोई न कोई बहाना बना कर थोड़ा समय और मांगा। एक बार दो महीने का और एक बार एक महीने का। दो बार किरायेदार के कारण और एक बार खुद की छुट्टी मंजूर न होने के कारण महेश का आना तीन बार टला और आखिर वह आ ही गया है।
महेश के यहाँ पहुंचते ही हम दोनों ने सुबह–सुबह ही किरायेदार के घर पर हमला बोल दिया है। यही वक्‍त है जब उसे घर पर घेरा जा सकता है। हम दोनों को सुबह छः बजे ही अपने दरवाजे पर देख कर पहले तो किरायेदार हैरान हुआ, फिर किसी तरह संभल कर बोला – अच्छा हुआ, आप आ गये। मैंने अपने लिए दूसरे मकान का इंतजाम कर लिया है, कल बारह बजे मुझे चाबी मिल जायेगी। कल शाम तक आपका मकान आपको खाली मिल जायेगा। इससे आगे उसने संवाद की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है।
महेश घर में कदम रखते ही परेशान हो गया है। किरायेदार ने घर बहुत ही बुरी हालत में रख छोड़ा है। हम दोनों ही हैरान हो गये हैं कि क्या ये महेश का वही घर है जिसे वह इतनी सफाई से और इतने जतन से साफ–सुथरा रखता था। लग ही नहीं रहा है कि इस घर में कोई दो साल से लगातार रह रहा है। चारों तरफ मकड़ी के जाले लगे हुए हैं। कागजों के ढेर, कचरा और ढेरों फटे पुराने जूते ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ा रहे हैं। रसोई का तो और भी बुरा हाल है। जैसे वहां दो साल से कचरा ही न बुहारा गया हो। एक अजीब–सी बदबू पूरे घर में फैली हुई है। जैसे अरसे से कई चूहे मरे पड़े हों घर में और उन्हें बाहर निकाला ही न गया हो।
उसने एक और बदमाशी की है उसने कि ड्राइंगरूम में ही दीवार पर एक बहुत बड़ा–सा लकड़ी का मंदिर ठोक दिया है। महेश जब यहाँ रहता था तो उसने कभी ड्राइंगरूम में एक कील तक नहीं ठोंकी थी और अब .. .. ... ।
इस समय उससे कुछ कहने का मतलब ही नहीं है। बस एक दिन की ही तो बात है। हम खाली हाथ वापिस लौट आये हैं।

और आज सात दिन बीत जाने के बाद भी हम महेश का मकान खाली नहीं करवा पाये हैं। हर बार एक नया बहाना। हर बार थोड़ी और मोहलत के लिए गिड़गिड़ाना और नये सिरे से वायदे करना ही चलता रहा है इस दौरान।
जब हम अगले दिन वहां गये तो पता चला, किरायेदार घर पर नहीं है, रात को देर से आयेगा। घर को देखते हुए ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा था कि घर खाली करने की कोई तैयारी ही की गयी होगी। जबकि किरायेदार के मुताबिक तो हमें इस वक्‍त खाली घर की चाबी लेने आना था।
हम अगले दिन सुबह–सुबह ही जा धमके हैं वहां। एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। पता चला है कि रात को जनाब घर वापिस ही नहीं आये। आउटडोर शूटिंग के सिलसिले में बाहर गये हुए हैं। आज शाम तक आने की उम्मीद है।
दरवाजा एक खूबसूरत और जवान लड़की ने खोला है। उसके पीछे एक और लड़का खड़ा है जिसके बारे में लड़की ने ही बताया है कि वह अंकल का ड्राइवर है। लड़की का परिचय पूछने पर उसने बताया है कि वह गोपालन की भतीजी है और यहाँ कुछ दिनों के लिए एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में आयी हुई है। ये बात हमारे गले से नीचे नहीं उतर रहीं क्योंकि एक तो वह लड़की किसी भी नज़रिये से मलयाली नहीं लग रही और नीचे आने पर हमें वाचमैन ने भी यही बताया कि ये लड़की तो अकसर यहाँ आती रहती है। एक और बात हमें परेशान करने लगी है कि बेशक किरायेदार ने महेश को बताया था कि वह मॉडल कोऑर्डिनेटर है लेकिन वॉचमैन और सोसायटी के दूसरे लोगों ने जो कुछ बताया है उसके अनुसार वहां रात–बेरात जिस तरह की लड़कियों का आना–जाना है, उनमें से ज्यादातर मॉडल तो क्या, सड़क किनारे खड़ी नज़र आने वाली पतुरिया से ज्यादा नहीं लगती। जैसा कोऑर्डिनेटर, वैसी ही मॉडल।
फिलहाल ये हमारा मुद्दा नहीं है कि किरायेदार क्या करता और क्या कराता है। फिलहाल हमारी चिंता महेश का मकान वापिस पा लेने की है जो हमारे सामने होते हुए भी वापिस नहीं मिल रहा।
लड़की ने जब दरवाजा खोला था तो हम सीधे अंदर तक चले आये थे। महेश का खून वैसे ही खौल रहा था। आज उसे आये चार दिन हो गये थे और किरायेदार था कि लुका–छिपी का खेल खेल रहा था। लड़की हमें इस तरह अंदर आते देख कर घबरा गयी लेकिन जब महेश ने उसे बताया कि वह मकान मालिक है और पिछले चार दिन से गोपालन के पीछे चक्कर काट काट कर परेशान हो गया है वो लड़की ने जैसे सरंडर ही कर दिया – आप चाहें तो अभी के अभी मकान खाली करा सकते हैं। मैं अपना सामान ले कर होटल चली जाऊंगी लेकिन क्या ये बेहतर नहीं होगा कि जहां आपने इतने दिन इंतज़ार किया, एक दिन और सही। लड़की ने जिस तरह से पूरी बात की और सहयोग देने का आश्वासन दिया, हम चाह कर भी उसे खड़े–खड़े बाहर नहीं निकाल पाये। वैसे भी किरायेदार की गैर हाजिरी में मकान खाली कराना न केवल गलत था बल्कि इससे अनधिकृत और जबरन प्रवेश का मामला भी बन सकता था। भले ही वह बेईमान था लेकिन था तो किरायेदार ही।
अलबत्ता, हमने इतना जोखिम जरूर लिया कि वॉचमैन की मदद से ड्राइंगरूम में से मंदिर उखड़वा दिया है। मंदिर के पीछे इतने काक्रोच निकले कि वह लड़की तो डर ही गयी। हमारा मूड तो खराब हुआ ही।
हम रात के वक्‍त के फिर वहां गये हैं और इस बार चार–पांच आदमी गये हैं और ये तय करके गये हैं कि कैसे भी आज मकान खाली करा ही लेना है। लेकिन वहां एक और ही सदमा हमारा इंतजार कर रहा है। घर पर केवल ड्राइवर है। वह लड़की वहां से शिफ्ट कर चुकी है। ड्राइवर ने जो कुछ बताया है उसे सुन कर हमें हंसी भी आ रही है और खून भी खौल रहा है। अगर ड्राइवर पर भरोसा किया जाये तो गोपालन शाम की फ्लाइट से केरल में अपने गांव गया है, शादी करने। हमें गुस्सा इस बात पर आ रहा है कि गोपालन एक बार फिर गच्चा दे गया और हँसी इस बात पर आ रही है कि बदमाश के पास रहने के लिए छत नहीं है, जो है उसे खाली कराने के लिए हम कब से उसे तलाशते फिर रहे हैं और जनाब पचपन साल की उम्र में फिर से ब्याह रचाने गांव गये हुए हैं।

बहुत मुश्किल से ड्राइवर गोपालन के गांव का फोन नम्बर तलाश कर पाया है। उसे तो वह भी न मिलता। एक तरह से हमने ही उसके गांव का नम्बर तलाशा। हुआ ये कि वहां हमें पड़े ढेरों कागजों में एसटीडी बूथ से की गयी एसटीडी कॉलों की कई रसीदें मिलीं। उनमें से सबसे ज्यादा बार जिस नम्बर पर फोन किये गये थे, उन रसीदों पर दिये गये एसटीडी कोड के जरिये ही नम्बर का अंदाजा लगा पाये। इसी नम्बर के जरिये हमने उसके गांव के नाम का पता लगाया और फिर ड्राइवर से भी गांव का नाम कन्फर्म किया, संयोग से वहां कुछ पत्र हमें रखे मिल गये जिन पर गांव का नाम लिखा हुआ था। आखिर जायेगा कहां बच्चू। शादी करने गया हो या अपने धंधे के लिए नयी मॉडल तलाशने, आखिर वापिस तो यहीं आयेगा। कब तक बचता बचाता फिरेगा।
संयोग से गोपालन घर पर मिल गया है और महेश ने इस बात की परवाह किये बिना कि गांव में शादी कराने गया हुआ है, फोन पर ही उसकी जो लानत–मलामत की है, गोपालन जिंदगी भर याद रखेगा। लगभग पन्‍द्रह मिनट तक महेश उसे फोन पर ही धोता रहा और जब उसे ये धमकी दी गयी कि आज ही उसका सारा सामान उसकी गैर–मौजूदगी में सड़क पर डाल दिया जायेगा पुलिस केस बनता है तो बने, तो उसने एक बार फिर गिड़गिड़ा कर सिर्फ तीन दिन की मोहलत मांगी है और कहा है कि वह कैसे भी करके आते ही घर खाली कर देगा।
महेश मकान को ले कर बहुत परेशान हो रहा है। वह जानता है कि किरायेदार उसके लंदन में होने का पूरा फायदा उठा रहा है। गोपालन को पता है कि महेश हमेशा के लिए तो छुट्टी ले कर उसके पीछे चक्कर काटने से रहा इसलिए वह लगातार कोशिश करके सामने आने से ही बच रहा है।
हम पुलिस चौकी गये हैं कि इस बारे में क्या वहां से कोई मदद मिल सकती है तो पुलिस ने साफ जवाब दे दिया है कि वे इस तरह के मामलों में कुछ नहीं कर सकते। जब महेश ने उन्हें गोपालन के हस्ताक्षर वाला बिना तारीख का मकान खाली करके देने वाला कागज दिखाया तो पुलिस का यही कहना है कि आप बेशक जोर–जबरदस्ती से मकान खाली करवा लीजिये, वे बीच में नहीं आयेंगे।
महेश ने लंदन जाने से पहले यहीं और इसी इलाके में कम से कम पन्‍द्रह बरस गुजारे हैं और वह यहाँ के कायदे कानूनों से और काम करने के तौर तरीकों से अच्छी तरह से वाकिफ है फिर भी लगातार सबको गालियां दे रहा है कि ये सब लंदन में होता तो ये हो जाता और वो हो जाता। फिलहाल स्थिति यही है कि वह तीन बार अपने वापिस जाने की तारीख आगे खिसका चुका है। वहां उसके काम का हर्जा हो रहा है वो अलग। लेकिन किया भी क्या जाये। इस देश में मकान किराये पर देने वालों की यही नियति होती है। अपना मकान वापिस पाने के लिए क्या–क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते।

इस बीच हम लगातार महेश के इस्टेट एजेंट की तलाश करते फिर रहे हैं। कोई बताता है कि वह मीरा रोड की तरफ चला गया है तो कोई बताता है कि अब उसने ये काम ही छोड़ दिया है और चिंचपोकली के पास कम्प्यूटर सेंटर खोल कर वहां नया धंधा कर रहा है। जितने मुंह उतनी ही बातें और सारी की सारी भ्रामक। हम कई जगह भटकते रहे उसकी तलाश में लेकिन वह किसी के भी बताये पते पर नहीं मिला।

आखिर गोपालन वापिस लौट आया है। हम जानते हैं कि ये गलत है कि वह आज ही गांव से शादी करके आया है और अपने साथ नयी ब्याहता दुल्हन ले कर आया है और हम इस तरह से सुबह सुबह ही तकादा करने वालों की तरह जा धमकें। आखिर उसकी शादी हुई है और हम उसे ठीक ठीक तरीके से बधाई देने जायें लेकिन महेश का कहना है कि इस तरह जाने से वह मानसिक रूप से दबाव में आयेगा। यही बात हमारे पक्ष में जायेगी। और हम सचमुच उसे बधाई देने के बजाये उसे घर खाली करने के लिए धमकाने चले आये हैं।
लेकिन मानना पड़ेगा गोपालन को भी। इस बार भी उसके पास एक और रेडिमेड बहाना है कि जिस आदमी के घर उसे शिफ्ट करना है उसका जीजा मर गया है। कम से कम चौथे दिन के संस्कार तक के लिए इसे मोहलत दी जाये। उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं है कि वह एक हफ्ते से हमें इस तरह लटकाये हुए हैं। महेश चाह कर भी इस बीच अपनी अकेली और विधवा मां से मिलने मुरादाबाद नहीं जा पाया है। इस तरफ से कुछ तय हो तो ही वह कुछ और करने की सोचे।

महेश का सिर एकदम गर्म हो गया है। वह कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं है। बात ठीक भी है। ये आदमी महेश को कब से बेवकूफ बना रहा है और लगातार तनाव में रखे हुए हैं। खुद उसे अपनी जिम्मेदारी का ज़रा सा भी ख्याल नहीं है। अगर किसी ने मेहरबानी करके आपको किराये पर मकान दे दिया तो उसका ये मतलब तो नहीं कि आप उसे मकान खाली कराने के लिए रूला डालें। गोपालन यही कर रहा है पिछले कई दिनों से।

महेश ने उसे आखिरी चेतावनी दे दी है – मैं आपको कल शाम तक का समय दे रहा हूं और ये आखिरी वार्निंग है। अगर इसके बाद भी आप मकान खाली नहीं करते तो मैं बाहर से ताला लगा दूंगा। मैं ये भी नहीं देखूंगा कि आप घर के अंदर हैं या आपकी बीवी बाथरूम में बंद रह गयी है।
हम ये धमकी दे कर आ तो गये हैं लेकिन नहीं जानते कि कल क्या होनेवाला है।
इस बीच गोपालन ने दो तीन फीलर्स भिजवाये हैं कि किसी तरह से उसे थोड़ा–सा समय और मिल जाये लेकिन महेश ने किसी भी संदेश देने वाले से बात करने से ही मना कर दिया है। हम जानते हैं कि हर बार गोपालन ने मोहलत मांगी है और हर बार वह मुकर गया है।

और गोपालन ने इस बार भी मकान खाली नहीं किया है। सोसायटी के कहने पर महेश ने दरवाजे पर ताला तो नहीं लगाया है लेकिन गोपालन को और कोई मौका न देने का फैसला कर लिया है।
हम बहुत परेशान हो चुके हैं। वह हमारे धैर्य की इतनी परीक्षाएं ले चुका है कि अब तो पानी कब का गले से ऊपर आ चुका है। हम परेशान हाल यूं ही बाज़ार में घूम रहे हैं कि सामने एक इस्टेट एजेंट का बोर्ड नज़र आया है। हम दोनों बिना किसी खास मकसद के भीतर चले गये हैं कि शायद यहाँ से कोई मदद मिल जाये।

- आइये साहब जी। भीतर एसी ऑफिस में बैठा आदमी हमारा स्वागत करता है।
महेश बताता है उसे – नमस्कार जी मेरा नाम महेश है और मैं लंदन से आया हूं।
- कहिये, आपकी क्या सेवा की जाये जी।
– जी बात दरअसल यह है कि मैं एक अजीब सी मुसीबत में फंस गया हूं और आपकी दुकान का बोर्ड देख कर सिर्फ इस उम्मीद में भीतर आ गया हूं कि शायद आप मेरी मदद कर सकें।
– ये तो जी आपकी पूरी बात सुनने के बाद ही पता चल पायेगा साहब जी कि हम आपके किस काम आ सकते हैं।
ये आदमी जिस तरह से बात कर रहा है, अपने धंधे का पूरा घाघ मालूम होता है।
महेश उसे बता रहा है – दरअसल बात ये है कि मेरा एक घर था, मेरा मतलब है कि मेरा एक घर है यारी रोड पर। मैं लगभग दो साल पहले लंदन बसने के इरादे से यहाँ से गया था तो चार बंगला के एक इस्टेट एजेंट की मार्फत अपना फ्लैट किराये पर दे गया था। वही लीव एंड लाइसेंस वाला चक्कर।
– ठीक, तो आगे . . .
- आगे हुआ ये जी कि जब मैंने ग्यारह महीने बाद फ्लैट खाली कराने के लिए किरायेदार को लंदन से खत भेजने शुरू किये तो उसने एक का भी जवाब नहीं दिया और न ही किराया ही मेरे खाते में जमा ही कराया न एजेंट को ही दिया।
- ठीक
- जब मैंने उसे लंदन से फोन किये तो उसने गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया कि वह कुछ तकलीफों में हैं और उसे छः महीनों के लिए और रहने की मोहलत दे दी जाये। अब मैं लंदन में बैठ कर मोहलत देने के अलावा कर भी क्या सकता था। जब मैंने उससे पिछले किराये की बात की तो उसने बताया कि वह किराया चंद्रकांत भाई को लगातार देता रहा है, पचास हजार उसने एडवांस के दिये थे।
– ठीक
– वो जी मैंने तब चंद्रकांत भाई को फोन किया तो उसका फोन एक बार भी नहीं मिला। बाद में मेरे दोस्तों ने बताया कि इस पते और फोन नम्बर पर कोई इस्टेट एजेंट नहीं है। तब मैंने लंदन से अपने किरायेदार को कई बार फोन करके बताया कि मैं फलां तारीख को बंबई मकान खाली कराने आ रहा हूं तो हर बार उसने यही कहा कि आपके आने से दो दिन पहले मैं मकान खाली कर दूंगा और आपके आते ही आपको चाबी थमा दूंगा।
– फिर
– फिर जी, आज मुझे बंबई आये हुए आठ दिन हो गये हैं। वह मकान खाली करने को तैयार ही नहीं है। मैंने कई जगह पूछ के देख लिया कि शायद कहीं से बदमाश चंद्रकांत भाई का पता चल जाये लेकिन वह कहीं नहीं मिल रहा है।
– ठीक
– अब मुसीबत ये है कि मैं तीन बार अपनी टिकट कैंसिल करवा चुका हूं, उधर लंदन में मेरे काम का हर्जा हो रहा है और ये कम्बख्त किरायेदार मकान खाली करने को तैयार ही नहीं है।
– क्या कहता है।
– पहले तो वह मेरे आने वाले दिन बड़े प्यार से मिला और कहने लगा, परसों सुबह आप चाबी लेने आ जायें। घर आपको खाली मिलेगा। जब मैं दो दिन बाद पहुंचा तो दो दिन वो घर ही नहीं आया। फिर पता चला जनाब केरल निकल गये हैं अपने होम टाउन शादी करने।
– आपको कैसे पता चला?
– उस घर में, मेरा मतलब है मेरे घर में एक जवान लड़की और उस किरायेदार का ड्राइवर रह रहे थे। लड़की ने बताया कि आप बेशक घर खाली करा ले लेकिन अंकल दो दिन बाद वापिस आ रहे हैं सिर्फ दो दिन रुक जायें। मैं रुक गया तो ड्राइवर से पता चला कि वो तो शादी करने गया है। किसी तरह से हमने उससे केरल का नम्बर लेकर फोन किया और उसे याद दिलाया कि उसे इस तरह से बिना घर खाली किये नहीं जाना चाहिये था। उसने फिर वायदा किया कि वह तीसरे दिन कैसे भी करके वापिस आ कर घर खाली कर देगा।
– फिर
– अब वह वापिस आ गया है शादी करके और अब तक उसने रहने का कोई इंतजाम नहीं किया है।
– करता क्या है
– उस पर विश्वास किया जाये तो वह अपने आपको मॉडल कोऑर्डिनेटर बताता है।
– और आपको क्या लगता है कि वह क्या है
– मुझे तो जी वह लड़कियों का दलाल ही लगता है। बिल्डिंग वाले भी बताते हैं कि उस घर में रात–बेरात तरह तरह की लड़कियों का आना जाना था।
– उम्र कितनी होगी उसकी
– यही कोई पचपन के आस पास
– और आप बता रहे हैं कि वह कल ही शादी करके आया है।
– मुझे तो जी उसकी शादी भी ड्रामा ही लग रही है।
– बिल्डिंग की सोसायटी, मेरा मतलब सेक्रेटरी वगैरह को आपने विश्वास में लिया था क्या।
– वैसे तो सेक्रेटरी भला आदमी है और मेरी तरफ से पूरी कोशिश भी कर रहा है कि मेरा मकान मुझे वापिस मिल जाये लेकिन दिक्कत यही है कि जो भी उसे दो पैग पिला दे और फिश फ्राइ खिला दे, वह उसी की तरफ हो जाता है।
– और कोई बात
– देखिये मैं अपने मकान को लेकर पिछले कई दिनों से इतना परेशान हूं कि क्या बताऊं। कुछ समझ में नहीं आ रहा कि यहाँ कब तक मैं कैंप डाले पड़ा रहूंगा और उस बदतमीज किरायेदार की लंतरानियां सुनता रहूंगा। उस कम्बख्त ने छः महीने से न बिजली का बिल जमा कराया है और न ही टेलिफोन बिल ही। और तो और उस साले ने, गाली देने को जी चाहता है, साल भर से मेरी डाक तक दबा कर रखी हुई थी। आज सुबह उसने मुझे कोई सौ चिट्ठियों का बंडल पकड़ा दिया कि ये डाक है आपकी। दिल तो किया मेरा कि उसका वहीं खड़े खड़े गला घोंट दूं।
- देखिये महेशजी, तनाव में आने से तो बात और बिगड़ेगी। मैंने आपकी पूरी बात सुनी है। मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है। जहां तक मैं समझ पाया हूं आप हमारे पास दो उम्मीदें ले कर आये हैं। पहली कि किसी भी तरह से आपका मकान खाली कराने में आपकी मदद करूं और हो सके तो आपके उस एजेंट को ढूंढ़ने में आपकी मदद करूं।
– सही फर्माया आपने। मैं हर तरफ से निराश हो कर आपके पास आया हूं। पुलिस . . .
– देखिये ऐसे मामलों में पुलिस कोई मदद नहीं कर पाती, पुलिस ने यही कहा होगा न कि आप मकान किराये पर देते समय अगर उन्हें भी फार्मली खबर कर देते तो वे शायद कुछ मदद कर भी पाते।
– जी हां, यही कहा था।
– और यह भी कहा होगा कि आप अपने आप किरायेदार से कैसे भी निपटें, वे बीच में दखल नहीं देंगे।
– जी हां मुझे नहीं पता था कि यहां की पुलिस इतनी गैर जिम्मेदार है और इतनी बेरुखी से पेश आती है।
– अब क्या किया जाये। फिलहाल हम देखें कि आपकी कैसे मदद की जाये।
– जी
– देखिये, जहां तक चंद्रकांत की बात है, हमें भी पता चला है कि वह कई लोगों को धोखा दे कर भागा हुआ है। हमारा भी एकाध पार्टी का लेनदेन अटका हुआ है उसके साथ। खैर, फिलहाल आपके मकान खाली कराने की बात है तो उसका एक ही तरीका बचता है जो कई बार हमें भी अपनाना पड़ता है और वो है मसल पावर।
– जी मैं समझा नहीं।
– देखिये ये इस शहर की खासियत है कि यहां आपको एक से बढ़ कर एक टेढ़ा आदमी मिलेगा और दूसरी तरफ आपके जैसे शरीफ आदमी भी हैं जो अपना खुद का मकान वापिस पाने के लिए भटक रहे हैं। तो ऐसे में हमारी जो ये नेचर है ना, कुदरत, सही बेलेंस करती है, टेढ़े आदमियों को सीधा करने के लिए यहां कुछ मसल मैन भी हैं। वे लोग पैसे तो लेते हैं लेकिन सिर्फ टेढ़ी उंगली से ही घी निकालना जानते हैं। निकाल कर दिखा भी देते हैं। तो जनाब अगर आप चाहते हैं कि किसी ऐसी एजेंसी की सेवाएं ली जायें तो आगे बात की जाये।
– आप क्या सजेस्ट करते हैं सर?
– देखिये महेशजी, वह आदमी आपके लंदन में होने का पूरा फायदा उठायेगा। उसे पता है, आप शरीफ आदमी है। यहां हमेशा के लिए नहीं ठहर सकते। न उसका सामान बाहर फिकवायेंगे। ज्यादा से ज्यादा ग्यारह महीने का लीव और लाइसेंस दोबारा करवा लेंगे, लेकिन वह आपको मकान तो तुरंत खाली करके देने के मूड में नहीं लगता। और फिर आप बता रहे हैं कि उसका धंधा भी कुछ इस तरह का है।
– ये देखिये, मैंने उसे फ्लैट देते समय ही लिखवा लिया था कि वह मुझे फ्लैट का खाली पोजेशन दे रहा है।
– लेकिन सर, आप कागज के बलबूते पर भी फ्लैट कहां खाली करवा पाये। वह जब तक हो सके टालेगा। एक एक दिन, एक एक घंटा। ताकि एक बार फिर आपके लौट जाने का टाइम आ जाये।
– तो इसका मतलब . .
– घबराइये नहीं, हम आपकी मदद करेंगे। फीस लगेगी 25,000 रुपये और 24 घंटे में मकान खाली कराने की गारंटी।
– रेट कुछ ज्यादा लग रहे हैं।
– आप जितनी टेंशन में हैं और अपना ब्लड प्रेशर बढ़ा रहे हैं, उसके मुकाबले कम। और फिर दस बारह आदमियों की टीम होती है, कहीं कुछ मारपीट हो जाये तो उस सबका इंतजाम करके चलता पड़ता है। इस बात का भी ख्याल रखना पड़ता है कि पुलिस केस न बने। तो समझें फाइनल?
– आप तो मुझे इस्टेट एजेंट कम और साइक्रियाटिस्ट ज्यादा नज़र आ रहे हैं। अब जा कर इतने दिनों के बाद महेश के चेहरे पर हंसी आयी है। मुझे भी लगने लगा है कि ये आदमी काम करवा सकता है।
– आपकी जानकारी के लिए मैं रूड़की युनिवर्सिटी का बी ई हूं और मैं इस लाइन में आने से पहले इंजीनियरिंग पढ़ाता रहा हूं।
– तो इस लाइन में कैसे आ गये
– आप जैसे लोगों की सेवा करने के लिए। तो जनाब हम फाइनल समझें?
– ठीक है। तो यही सही। जहां मकान ने सवा लाख का घाटा दिया है वहां डेढ़ लाख का सही।
– तो कब? कितने बजे?
– तीन बजे ठीक रहेगा।
– ठीक है तीन बजे आपके पास राजू अपनी टीम ले कर पहुंच जायेगा। अपना पता और फोन नम्बर दे दीजिये। वैसे उसकी दुल्हन कहां है?
– क्यों, वहीं पर ही है।
– तो आप एक और काम कीजिये, अपने किसी दोस्त की बीबी को भी बुलवा लीजिये, पूरे परिवार से घर खाली कराने के मामले में जरा संभल कर रहना पड़ता है। जस्ट फार सेफर साइड।
– हो जायेगा।
– पेमेंट अभी कर रहे हैं या राजू के हाथ भिजवा देंगे।
– पेमेंट की चिंता न करें। आप तक पहुंच जायेगी। तो मैं चलता हूं। - - ओके।
– ओके।

और हम बाहर आ गये हैं।

महेश पूछ रहा है मुझसे – क्या ख्याल है ये आदमी काम करवा देगा।
– यार लग तो मुझे भी रहा है कि इस आदमी की बात में दम है और ये काम करवा भी देगा।
– चलो एक कोशिश और सही।
और हम लौट आये हैं महेश के मकान के नीचे। हमने पास ही रहने वाले एक दोस्त और उसकी बीवी को भी बुलवा लिया है।

इस समय बिल्डिंग के नीचे महेश, दो–तीन लड़के, हमारे दो तीन दोस्त, एक की बीवी वगैरह खड़े हैं। बिल्डिंग का बूढ़ा सा सेक्रेटरी और कुछ तमाशबीन भी आ जुटे हैं।

महेश सेक्रेटरी से पूछ रहा है – अब क्या कहता है पुरी साहब वो सेक्रेटरी – देखिये महेशजी, मैं अभी अभी उससे बात करके आया हूं और वह अब कल सुबह तक की मोहलत मांग रहा है। अभी भी दोस्त के रिश्तेदार के मरने वाला किस्सा दोहरा रहा है कि इसीलिए चाबी नहीं ला पाया।

बीच में किसी ने टांग अड़ायी है – मतलब ही नहीं है जी मोहलत देने की। साले ने बिल्डिंग में कब से गंद मचा रखा है।

अब दूसरे को भी हिम्मत आ गयी है। सबको लग रहा है आज जो ड्रामा यहां होगा, उसे देखे बिना कैसे चलेगा।

अब दूसरा बोल रहा है – मैंने भी उसे एक मकान दिखाया था, सिर्फ आठ हजार भाड़े पर और डिपाजिट भी सिर्फ बीस हजार। ये बंदा उसके लिए भी राजी नहीं।
– अरे जब मुफ्त में हनीमून मनाने के लिए इतना बड़ा फ्लैट मिला हुआ है तो वह क्यों जायेगा कहीं और।
– साले ने बिल्डिंग में रंडीखाना खोल रखा है। पता नहीं ये भी बीवी है या नहीं, बेचने के लिए लाया होगा। देखा नहीं कितनी छोटी है इससे और डरी हुई भी थी।

ये बातें हो ही रही हैं कि तभी मोटरसाइकिल पर छः फुट तीन इंच का जवान आया है। पूछ रहा है
– यहां आप में से महेशजी कौन हैं?
महेश आगे बढ़ कर बता रहा है
– मैं ही हूं जी

वह गर्मजोशी से हाथ मिलाता है
– मेरा नाम राजू है। कहां है वो आपका किरायेदार?
– लेकिन आपकी टीम राजू
– कौन सी टीम, अरे हम वन मैन आर्मी हैं। हमारे साथ सिर्फ मां भवानी चलती है। दिखाइये कहां है वो चूहा, बस मुझे सिर्फ दो–तीन आदमी दे दीजिये सामान बाहर निकालने के लिए और मुझे बिलकुल भी भीड़ नहीं चाहिये। ओके।

सब लोग हैरानी से इस देवदूत सरीखे आदमी को देख रहे हैं और उसे लिए रास्ता छोड़ दिया है। हम भी हैरान है कि ये कैसा आदमी है जो अकेले के बलबूते पर घर खाली कराने चला है। आज तो न देखा न सुना। अगर घर खाली कराना इसके लिए इतना आसान है तो शहर में इसकी कितनी मांग रहती होगी।

वह हमारे साथ सीधे ही ऊपर चला आया है और उसी ने फ्लैट की घंटी बजायी है। दरवाजा गोपालन ने ही खोला है। इससे पहले कि वह कुछ कह सके, राजू ने दरवाजा पूरा खोल दिया है और सोफा बाहर की तरफ खिसकाना शुरू कर दिया है।

गोपालन को इसकी उम्मीद नहीं है कि ऐसा भी हो सकता है
– ये क्या करता है आप साब, आप कौन है, हम महेशजी से बात करेंगे। - महेशजी इसे रोको। मैं आपसे बोला ना हमको कल सुब्बू तक का टाइम मांगता है। हम कल सुबे ही मकान खाली कर देंगी।
– वो तो आप पिछले चार महीने से बोल रहे हैं गोपालन जी, मैं थक गया हूं आपके वायदे सुनते सुनते।

गोपालन गुस्से में राजू को रोकने की कोशिश कर रहा है – आप इस तरह से मेरे घर में घुस के मेरे सामान को हाथ नहीं लगा सकता। मैं तुमको बोला ना ये शरीफ आदमी का घर है। हमारा वाइफ क्या सोचेंगा, उसको अभी यहां आया एक दिन भी नहीं हुआ है और आप . . .
हम सब तमाशबीन बने देख रहे हैं।
राजू ने उसे परे हटा दिया है – ओये हट पीछे . . . बड़ा आया शरीफ का चाचा। क्या कर लेगा तू ओये ओये। राजू एकदम गोपालन के सीने पर सवार होने लगा है और उसने अपनी कमीज की बाहें ऊपर कर ली हैं – बोल। तब तेरी शराफत कहां गयी थी जब मकान दबा कर बैठ गया है।
गोपालन अब वाकई घबरा गया है और महेश की तरफ मुड़ा है – महेशजी, महेशजी इस आदमी को हटाओ, ये मुझे मार डालेंगा। ये गुंडा मवाली . . .
ये सुनते ही राजू ने उसका गला पकड़ लिया है – ओये, मवाली किसे बोला ओये, किसे बोला तू मवाली, मां भवानी की कसम। मैं तेरा खून पी जाऊंगा।
अब गोपालन को भी गुस्सा आ रहा है – तुम . . . तुम मेरे घर में घुस कर मुझे नहीं मार सकता। मैं मर जायेंगा तो तुमको पुलिस पकड़ कर ले जायेंगी। मैं मैं . . .
अब सेक्रेटरी वगैरह राजू को पकड़ कर पीछे कर रहे हैं कि कहीं वाकई कुछ हो न जाये लेकिन राजू पर जैसे खून सवार है। वह बार बार आगे आ रहा है।
दोनों में अभी भी गाली गलौज हो रहा है – देख लूंगा। देख लूंगा कर रहे हैं दोनों।
गोपालन ने आखरी कोशिश की है – महेशजी, यू गिव मी सम टाइम टू थिंक। जस्ट टेन मिनट्स। ऐ जैंटलमन रिक्वेस्ट। प्लीज। रिक्वेस्ट।
महेश – ठीक है। आपको हम दस मिनट दे रहे हैं। उसके बाद आपको कोई भी नहीं बचा पायेगा।
गोपालन मान गया है। शायद अपना आखरी दांव चलना चाहता होगा। हम सब वहीं ड्राइंगरूम में ही घेरा डाल कर बैठ गये हैं। पता नहीं कौन सबके लिए कोल्ड ड्रिंक ले कर आ गया है। वैसे इसकी जरूरत भी थी। सभी का तो खून खौल रहा है।
गोपालन कह रहा है – ओ के। प्लीज। प्लीज . . .
तभी हमारी निगाह सामने बेडरूम के दरवाजे के पीछे से सहमी हुई सी उसकी बीवी पर पड़ती है। उसके चेहरे पर भयातुर हिरणी जैसे भाव हैं। उसने अपने सीने से एक छोटा सा कुत्ता दबा रखा है। औरत बेहद डरी हुई है। वह जिस तरह से सारा नज़ारा देख रही है उससे मैं अचानक सकपका गया हूं। मैंने अपनी पूरी जिंदगी में किसी औरत की आंखों में इतना डर नहीं देखा होगा। उफ् . . . मैं उसकी तरफ देखने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता।
मैं अपने हाथ की कोल्ड ड्रिंक की बोतल वहीं एक कोने में रख कर बाहर आ गया हूं। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था आंखों में इतने डर की।
हमारे साथ आयी कपूर की बीवी ने भी शायद उसकी आंखों में तैर रहे डर को पढ़ लिया है। उसने गोपालन की बीवी के पास जा कर उसके कंधे पर हाथ रखा है
– डोंट वरी। घबराओ नहीं, कुछ नहीं होगा। वह उसका कंधा थपथपा रही है। मुझे राहत मिली है कि मैं अकेला नहीं हूं जिस तरह उन डरी हुई आंखों का संदेश पहुंचा है।
इस बीच गोपालन ने तीन चार जगह फोन किये हैं। कहीं मलयालम में तो कहीं टूटी फूटी हिन्दी अंग्रेजी और मलयालम में। बता रहा है कि उसे अभी घर खाली करना है। वह सब जगह से आखरी मदद मांग रहा है लेकिन उसके चेहरे से लगता नहीं कि कहीं से भी उसे सही जवाब मिला होगा। उसने फोन रख दिया है और सिर झुकाकर बैठ गया है और अपने बालों को पकड़ कर खींच रहा है। सब लोग इंतजार कर रहे हैं कि अब क्या होगा।
महेश ने उसके पास जा कर बहुत ही ठंडे और ठहरे हुए लहजे में कहा है – अब आपके दस मिनट पूरे हो गये हैं मिस्टर गोपालन।
गोपालन कह रहा है – प्लीज, ट्राइ टू अंडरस्टैंड।
– मिस्टर गोपालन आपके पास और कोई बात हो तो बताओ। आपका टाइम पूरा हो चुका है।
गोपालन – मुझे कल सुबह तक का टाइम चाहिये। मैं जिदर सामान . ..
– दैट इज नॉट माइ प्राब्लम। ओके
– आप सुनेगा नहीं तो हम बात कैसे करेंगे। जस्ट वन डे।
राजू बीच में टपक पड़ा है – नहीं मिलेगा। और कुछ?
गोपालन – देखिये मिस्टर मैं महेशजी से बात कर रहा हूं। मुझे बात करने दें आप। महेशजी आप आप इसे बोलो, हम हार्ट पेशेंट हैं। हमको कुछ हो गया तो हमारा . . .
राजू अब गुस्से में आ गया है – मैं तेरे किसी नाटक में आने वाला नहीं । हटो जी, उतारो सामान। बहुत हो गया साले का ड्रामा।
गोपालन अब रुआंसा हो गया है – हम ड्रामा करता है? हैं हैं हम ड्रामा करता है। आप क्या बोल रहा है कि हम ड्रामा करता है।
राजू ने उसकी नकल उतारी है – हां ड्रामा करता है। और इतना कहते ही उसने सामान उठा कर दरवाजे के बाहर ले जाना शुरू कर दिया है।
हम सब तमाशबीनों की तरह खड़े देख रहे हैं। अब कोई भी बीच में नहीं आ रहा। सबको पता है, बीच बचाव कराने की घड़ी जा चुकी। इस बीच काफी चीजें बाहर ले जायी जा चुकी हैं। अब सबने मिल कर सामान निकालने में मदद करनी शुरू कर दी है। मैं अभी भी गोपालन की बीवी की सहमी सहमी आंखों पर के बारे में सोच रहा हूं। मुझे लग रहा है उस बेचारी के साथ गलत हो रहा है। उसे तो बंबई आये चौबीस घंटे भी नहीं हुए। शादी भी दो तीन दिन पहले ही हुई होगी। पता नहीं क्या–क्या सपने ले कर आयी होगी और क्या–क्या सब्ज बाज दिखाये गये होंगे उसे। लेकिन सच्चाई तो वही है जो वह अपनी डरी डरी आंखों से देख रही है।
वह अब रसोई के दरवाजे पर आ गयी है। मैं कनखियों से देखता हूं, उसकी आंखों से धारोधार आंसू बह रहे हैं
गोपालन कह रहा है – वन मोर चांस प्लीज। जस्ट वन फोन प्लीज।
महेश ने इजाजत दे दी है – ओके एक और फोन कर ले।
गोपालन एक और फोन कर रहा है। वह फोन पर गिड़गिड़ा रहा है। इस बीच राजू ओर दूसरे लड़कों ने रसोई में जा कर सामान समेटना शुरू कर दिया है।
गोपालन ने फोन नीचे रख दिया है और फिर सिर पकड़ कर बैठ गया है। वह अब अपने आप से बोल रहा है। वह अपने आप से बातें कर रहा है – माय बैड लक। क्या क्या ड्रीम्स ले कर आया था। वाइफ को बोला तुम्हें अक्खा मुंबई घुमायेगा। एन्जाय करायेगा। अभी जर्नी का थकान भी नहीं उतरा और ये लोक मेरा सारा सामान सड़क पर डाल दिया है। इन्सानियत मर गया है। इन्सान का अब कोई भरोसा नहीं रहा। मैं कितना रिक्वस्ट किया लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। ये शहर डैड लोगों का शहर है। आदमी मर जायेंगा तो भी कोई पूछने के वास्ते नहीं आयेंगा। हम अपनी लाइफ का क्रीम इस शहर को दिया। आज हमारा ये हालत है कि हमारा सारा सामान सड़क पर है। हमारा वाइफ क्या सोचता होयेंगा कि हमारा अक्‍खा इस शहर में एक भी फ्रेंड नहीं है। लोक हमारा कितना रिस्पेक्ट करता था। हम किस किस का मदत नहीं किया। आज जब हमको मदत का जरूरत है वो कोई नहीं हैं। कोई नहीं, ओह गॉड आइ एम अलोन। हेल्प मी गॉड। माइ लाइफ माई ड्रीम्स . . . माई कैरियर गॉन। माइ गॉड। उसने अचानक रोना शुरू कर दिया है। तय है उसका कोई इंतजाम नहीं हो पाया है।
मैं एक किनारे खड़ा देख रहा हूं कि इस बीच सारा सामान नीचे उतार दिया गया है। गोपालन अपनी वाइफ का हाथ पकड़ कर नीचे आ रहा है और धीरे धीरे चलते हुए सामान के ढेर पर बैठ गया है। उसकी वाइफ अभी भी बहुत डरी हुई है और सहमी हुई निगाह से चारों तरफ देख रही है।
मैं अपने आप से पूछता हूं – ये सब क्या हो रहा है। हमने ये सब तो नहीं चाहा था। मैं सोच भी नहीं पा रहा कि इस सब में मेरी क्या भूमिका है। मैं नीचे आ गया हूं और मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा। गोपालन की बीवी की आंखों में पसरे डर ने पता नहीं मुझ पर क्या असर कर दिया है। बाकी सब लोग अभी भी ऊपर ही हैं।
धीरे धीरे अंधेरा घिर रहा है। गोपालन सड़क पर रखे अपने सामान पर बैठा हुआ है। अचानक उसने अपना सीना दबाना शुरू कर दिया है। उसे शायद सीने में दर्द महसूस हो रहा है। उसने अपने ड्राइवर को इशारा किया है। वह दौड़ कर पास की दुकान से उसके लिए सोडा ले कर आया है। वह सीना दबाये सोडा पी रहा है। उसकी बीवी और ज्यादा डर गयी है। उसने कुत्ते को नीचे उतार दिया है और पति के पास आ कर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ी हो गयी है।
मेरी निगाह ऊपर की तरफ जाती है। वहां बालकनी में खड़े राजू, महेश और उनके दोस्त खुशियां मनाते हुए बीयर पी रहे हैं।
मैं समझ नहीं पा रहा कि मुझे महेश का मकान खाली होने के लिए खुश होना चाहिये या गोपालन और उसकी नयी ब्याहता बीवी के इस तरह सड़क पर आ जाने के कारण उसके कंधे पर हाथ रख कर उससे सहानुभूति के दो बोल बोलने चाहिये।

उसकी बीवी अभी भी डरी सहमी खड़ी है।

Monday, August 11, 2008

बीसवीं कहानी - करोड़पति

इस समय भी वह लिफ्ट के पास खड़ा इशारे से किसी न किसी को अपनी तरफ बुला रहा होगा या फिर कैंटीन में बैठा अपनी ताजा रचना जोर - जोर से पढ़ रहा होगा। जिसने भी उससे आंख मिलायी, उसी की तरफ उंगली से इशारा करके अपनी तरफ बुलायेगा और भर्राई हुई आवाज़ में कहेगा, '' मैं आपको एक शब्द दूंगा। आप उसका मतलब किताबों में ढूंढना। किसी पढ़े लिखे आदमी से पूछना। मैं आपसे सच कहता हूं, उस शब्द से यह ऑफिस, यह शहर, यह दुनिया सब बदल जायेंगे, बेहतर हो जायेंगे। आप मुझे मिलना। अगर आपके पास वक्त न हो।'' यहां आते - आते उसकी सांस बुरी तरह फूल चुकी होगी और वह हांफने लगेगा। वहीं बैठ जायेगा। सांस ठीक होते ही फिर से उसका यह रिकॉर्ड चालू हो जायेगा। सामने कोई हो, न हो। तब तक बोलता रहेगा जब तक दरबान उसे खदेड क़र बाहर न कर दे, या भीतर न धकेल दे।

यह करोडपति है। असली नाम पुरुषोत्तम लाल। चपरासी है। आज कल सनक गया है। कभी खूब पैसे वाल हुआ करता था। खेती - बाड़ी थी। दो - तीन घर थे। शहर के कई चौराहों पर पान के खोखे थे। आजकल खाने तक को मोहताज है। अपने अच्छे दिनों में उसने सबकी मदद की। बेरोजगार रिश्तेदारों को काम धन्धे से लगाया। इसी चक्कर में सब कुछ लुटता चला गया। कुछ रिश्तेदारों ने लूटा और कुछ ऑफिस के साथियों ने निचोड़ा। अपने पैसों को वसूलने के लिये करोड़पति सबके आगे गिड़ग़िडाता फिरा। नतीजा यह हुआ कि वह सनक गया। बहकी - बहकी बातें करने लगा। जब पी लेता है तो और भी बुरी हालत हो जाती है। कभी गाने लगता है तो कभी जोर - जोर से बोलने लगता है।
भगवान जाने कितना सच है या न जाने लोगों की उडाई हुई है। एक दिन इसी सनक के चलते एक दिन ऑफिस के बाद घर जाते समय एक थैले में ढेर सारी चीजें, पेपरवेट, पंचिंग मशीन, कागज़, पैन - पैन्सिल जो भी मेजों पर पड़ा नजर आया, थैले में ठूंस लिया। शायद दिन में किसी से कहा - सुनी हो गयी होगी। उसी को जोर - जोर से कोसता हुआ बाहर निकला तो दरबान ने यूं ही पूछ लिया - थैले में क्या ले जा रहे हो करोड़पति? तो उसी से उलझ गया। ऊंच - नीच बोलने लगा। दरबान ने उसे वहीं रोक लिया और रिपोर्ट कर दी। करोड़पति सामान चोरी करके ले जा रहा है।
करोड़पति पकडा गया। सुरक्षा अधिकारी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि उसके खिलाफ मामला न बने, बेचारा पहले ही दुनिया भर का सताया हुआ है। लेकिन पता चला कि करोड़पति अव्वल तो पिये हुए है और दूसरे, ढंग से बात करने को तैयार नहीं है। कभी कहे कि ये सामान फलां साहब ने अपने घर पर मंगवाया है, तो कभी कहे कि - वह ऑफिस की नौकरी छोड़ रहा है। अब इसी सामान की दुकान खोलेगा। उसने अपने आप को यह कह कर और भी फंसा लिया कि - यह तो कुछ भी नहीं है, वह तो अरसे से थैले भर - भर कर सामान ले जाता रहा है।
उसके खिलाफ मामला बना और उसे सस्पैण्ड कर दिया गया। तबसे और सनक गया है।
मैले कुचैले कपडे, एकदम लाल आंखें, नंगे पैर, हाथ में पांच सात कागज़, दाढ़ी बढ़ी हुई। तब से रोज सुबह लिफ्ट के पास खड़ा सबको पुकारता रहता है। कोई उसके सामने नहीं पड़ना चाहता। वे तो बिलकुल भी नहीं जिन्होंने उसकी सारी पूंजी लूट कर उसकी यह हालत बना दी है।
उसकी सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि वह घर और बाहर दोनों ही जगह से फालतू हो गया है। घरवालों की बला से वह कल मरता है तो आज मरे। कम से कम उसकी जगह परिवार में किसी को तो नौकरी मिलेगी। उनके लिये तो वह अब बोझ ही है। ऑफिस में उसकी परवाह किसे है? वहां वह अकेला पागल ही तो नहीं। एक से एक पागल भरे पड़े हैं। कुछ हैं और कुछ बने हुए हैं। जो नहीं भी हैं वो सबको पागल बनाये हुए हैं।
कोई भी करोड़पति से बात नहीं करना चाहता। उसे देखते ही सब दायें - बायें होने लगते हैं। दुर - दुर करते हैं। कौन इस पागल के मुंह लगे। अगर कोई धैर्यपूर्वक उसकी बात सुने, उससे सहानुभूति जताये तो शायद उसके सीने का बोझ कुछ तो उतरे। लेकिन किसे फुर्सत?
जब उसकी इन्‍क्वायरी के लिये तारीख तय हुई तो यूनियन से उसका डिफेन्स तय करने के लिये कहा गया। यूनियन को भला ऐसे कंगले में क्या दिलचस्पी हो सकती थी। उन्होंने भी टालमटोल करना शुरु कर दिया। जब करोड़पति को उनके रुख का पता चला तो वह वहां भी गाली - गलौज कर आया - मुझे आपकी मदद की कोई जरूरत नहीं। मैं अपना केस खुद लड़ लूंगा। गुस्से में आकर उसने यूनियन से ही इस्तीफा दे दिया - चूंकि पुरषोत्तम लाल यूनियन का मेम्बर नहीं है, अत: यूनियन की तरफ से डिफेन्स उपलब्ध कराना संभव नहीं है।
मजबूरन ऑफिस ने ही उसके लिये डिफेन्स जुटाया और केस आगे बढ़ाना शुरु किया। लेकिन करोड़पति अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने को तैयार हो तो कोई क्या करे! कभी इनक्वायरी में नहीं आयेगा। आयेगा भी तो बात करने लायक हालत में नहीं रहेगा। अगर सारी स्थितियां उसके पक्ष में हों, वह आये, बात करने लायक हो, तो भी वह वहां कुछ ऐसा उलटा सीधा बोल आयेगा कि बात आगे बढ़ने के बजाय पीछे चली जाये - मैं एक - एक को देख लूंगा। सब मेरे दुश्मन हैं। मेरी बात ध्यान से नोट कर लो। मैं बाद में फिर आऊंगा। इस तरह की ऊटपटांग बातें करके लौट आयेगा।
इसी तरह ही चल रहा है करोड़पति। पता नहीं, खाना कहां से खाता है, पीना कहां से जुटाता है। इन दिनों उसे आधी पगार मिलती है जो पगार वाले दिन उसकी बीवी ले जाती है। कम से कम बच्चे तो भूखे न मरें। इस पागल का क्या!
संस्थान ने उसकी हालत पर तरस खा कर फिर से बहाल कर दिया है, अलबत्ता उसकी चार वेतन वृध्दियां कम कर दी हैं। उसे नौकरी में वापिस लिये जाने की एक वजह यह भी रही कि उसका ढंग से इलाज हो सके और एक परिवार बेवक्त उजड़ने से बच जाये। लेकिन हुआ इसका उलटा ही है। करोड़पति की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गयी है। काम करने लायक तो वह पहले कभी नहीं था, इधर उसने दो तीन नये रोग पाल लिये हैं। आजकल वह बात - बात पर इस्तीफा दे देता है। कभी उसे गाने का शौक रहा होगा, कुछेक फिल्मी गीत याद भी रहे होंगे। उन्हीं में से कुछ शब्द आगे पीछे करके ले आता है। टाइपिस्ट सीट पर बैठे भी नहीं होते हैं कि सिर पर आ धमकता है - '' इसे टाइप कर दो। अभी किशोर कुमार इसे गाने वाले हैं। वे स्टूडियो में इसकी राह देख रहे हैं। वे नहीं गायेंगे तो मैं खुद गाऊंगा।'' और वह वहीं शुरु हो जाता है। भर्राये हुए गले से करोड़पति गा रहा होता है और सब खी - खी हंस रहे होते हैं। पिछले हफ्ते उसे सस्‍पैन्शन की अवधि की बकाया रकम मिली है। उसी पैसे से पी जा रही दारू का नतीजा है यह।
अगर टाइपिस्ट यह तुकबन्दी टाइप करने से मना कर दे, कैन्टीन से चाय मिलने में तीन मिनट से ज्यादा लग जायें, कोई बिल एक ही दिन में पास न किया जाय तो वह तुरन्त इस्तीफा दे देता है। बेशक अगले दिन उसके बारे में भूल जाये और किसी और बात पर कोई नया इस्तीफा दे दे। कई बार उसके पांच - सात इस्तीफे जमा हो जाते हैं जिन्हें डायरी क्लर्क एक किनारे जमा करती रहती है। जहां तक उसके इलाज का सवाल है, करोड़पति को डॉक्टर के पास ले जाया जाता है, उसकी तकलीफ बतायी जाती है, दवा भी मिलती है, लेकिन खाने के लिये तो करोड़पति को एक और जनम लेना पडेग़ा।

करोड़पति लापता है। पिछले कई दिनों से न घर पहुंचा है और न ऑफिस ही। वैसे तो पहले भी वह कई बार दो - दो, चार - चार दिनों के लिये गायब हो जाता था, लेकिन जल्द ही मैले - कुचैले कपड़ों में लौट आता था। इस बार उसे गायब हुए महीना भर होने को आया है। उसका कहीं पता नहीं चल पाया है। इस बार पगार वाले दिन उसकी बीवी उसे ढूंढते हुए ऑफिस आई, तभी सबको याद आया कि कई दिन से करोड़पति को नहीं देखा। कई दिन से वह घर भी नहीं पहुंचा था। वैसे तो कभी भी किसी ने उसकी परवाह नहीं की थी, न घर पर न दफ्तर में। अब अचानक सबको करोड़पति याद आ गया था। बीवी को पगार वाले दिन उसकी याद आई थी, बल्कि जरूरत पड़ी थी कि आधी - अधूरी जितनी भी पगार है, करोड़पति से हस्ताक्षर करवा कर ले जाये। अगली पगार तक करोड़पति अपने दिन कैसे काटता था, क्या करता था यह उसकी सिरदर्दी नहीं थी। बेशक कर्जे वसूलने वाले भी पगार के आस - पास मंडराते रहते थे कि उसके हाथ में लिफाफा आते ही अपना हिस्सा छीन लें। लेकिन उसकी बीवी की मौजूदगी में कुछ भी वसूल नहीं कर पाते थे। अलबत्ता बीवी को ही डरा धमका कर सौ - पचास निकलवा पायें यही बहुत होता था। वे भी अब परेशान दिखने लगे थे। करोड़पति नहीं है अब क्या वसूलें और किससे वसूलें।
अब अचानक सबको याद आने लगा है कि - किसने करोड़पति को आखिरी बार कहां देखा था! किसी को हफ्ता भर पहले स्टेशन पर पूरी - भाजी खाते नजर आया था तो किसी ने उसे सब्जी मण्डी में मैले कुचैले कपड़े पहने भटकते देखा था। किसी का ख्याल था कि वह या बिलकुल वैसा ही एक आदमी थैला लिये शहर से बाहर जाने वाली एक बस में चढ़ रहा था। जितने भी लोग थे करोड़पति के बारे में अपने कयास भिड़ा रहे थे, कोई भी यकीन के साथ बताने को तैयार नहीं था। बल्कि कुछ लोग तो इतनी दूर की कौड़ी ख़ोज कर लाये थे कि तय करना मुश्किल था कि किसके कयास में ज्यादा वजन है। एक चपरासी को तो पूरा यकीन था कि पिछले हफ्ते रेलवे पुल के पास भिखारी जैसे किसी आदमी की जो लाश मिली थी, हो न हो वह करोड़पति की ही रही होगी। अलबत्ता यह खबर देने वाले के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि अगर वह करोड़पति की ही लाश थी तो उसने पहले खबर क्यों नहीं दी? ये और इस तरह की कई अफवाहें अचानक हवा में उठीं और गायब भी हो गयीं।
ऑफिस में तो उसकी मौजूदगी - गैर मौजूदगी महसूस ही नहीं की गई थी, लेकिन उसकी बीवी वाकई चिन्ता में पड़ गयी है। उसकी चिन्ता करोड़पति की पगार को लेकर है, जो उसे बिना करोड़पति के हस्ताक्षर के नहीं मिल सकती है। उसने ऑफिस से करोड़पति की गैर हाजिरी का प्रमाणपत्र ले लिया है और थाने में उसके गुमशुदा होने के बारे में रिपोर्ट लिखवा दी है। किसी तरह रोते - पीटते अपनी गरीबी की दुहाई देते हुए उसके गुमशुदा होने का प्रसारण भी दूरदर्शन पर करवा दिया है। लेकिन इस बीच न करोड़पति लौटा है न उसके बारे में कोई खबर ही मिली है।
तीन महीने तक इंतजार करने के बाद ऑफिस ने हर तरह की कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद संस्थान का मकान खाली करने का आदेश उसकी बीवी को दे दिया है। उसकी बीवी की सारी कोशिशों और अनुरोधों के बावजूद ऑफिस से करोड़पति का एक पैसा भी उसे नहीं मिल पाया है। इस बीच उसने करोड़पति की जगह नौकरी के लिये भी एप्लाई कर दिया है जिसे ऑफिस ने ठण्डे बस्ते में डाल दिया है।
करोड़पति की जगह नौकरी पाने के लिये उसे या तो करोड़पति का मृत्यु प्रमाणपत्र लाना पड़ेगा या उसके गुमशुदा होने की तारीख से कम से कम सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा।

Monday, August 4, 2008

19वीं कहानी - मातमपुर्सी

इस बार भी घर पहुंचने से पहले ही बाउजी ने मेरे लिए मिलने जुलने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त बना रखी है। इस सूची में कुछ नामों के आगे उन्होंने ख़ास निशान लगा रखे हैं, जिसका मतलब है, मुझे उनसे तो ज़रूर ही मिलना है।
इस शहर को हमेशा के लिए छोड़ने के बाद अब यहां से मेरा नाता सिर्फ़ इतना ही रहा है कि साल छ: महीने में हफ्ते दस दिन की छुट्टी पर मेहमानों की तरह आता हूं और अपने खास खास दोस्तों से मिल कर या फिर मां बाप के साथ भरपूर वक्त गुज़ार कर लौट जाता हूं। रिश्तेदारों के यहां जाना कभी कभार ही हो पाता है। हर बार यही सोच कर आता हूं कि इस बार सब से मिलूंगा, सब की नाराज़गी दूर करूंगा, लेकिन यह कभी भी संभव नहीं हो पाया है। हर बार मुझसे नाराज़ होने वाले मित्रों की संख्या बढ़ती रहती है और मैं हर बार समय की कमी का रोना रोते हुए लौट जाता हूं।
लेकिन बाउजी की इस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम देखते ही मैं चौंका हूं। उस पर उन्होंने दोहरा निशान लगा रखा है। मैंने उनकी तरफ सवालिया निगाह से देखा है। उन्होंने हौले से कहा है - मैंने तुझे लिखा भी था कि मेहता की वाइफ गुज़र गयी है। मैंने तुझे अफ़सोस की चिट्ठी लिखने के लिए भी लिखा था। अभी बेचारा बीवी के सदमे से उबरा भी नहीं था कि अब महीना भर पहले संदीप भी नहीं रहा। मैं अवाक रह गया - अरे .. संदीप.. क्या हुआ था उसे? वह तो भला चंगा था, बल्कि उसकी शादी तो साल भी पहले. ही हुई थी। मैंने उसे कार्ड भी भेजा था।
आगे की बात मां ने पूरी की है - शांति बेचारी ज़िदगी भर खटती रही और अकेले बच्चों को पढ़ाती लिखाती रही। तेरे अंकल तो नौकरी के चक्कर में हमेशा दौरों पर रहे और उसी ने बच्चों को पढ़ाया लिखाया। जब आराम करने का वक्त आया तो कैंसर उसे खा गया। मां का गला भर आया है।
मां बता रही है कि संदीप कानपुर से एक मैच खेल कर लौट रहा था। रास्ते में किसी बस अड्डे पर कुछ खा लिया होगा उसने जिससे फूड पाइज़निंग हो गयी और यहां तक तो पहुंचते पहुंचते तो उसकी यह हालत हो गयी थी कि वहीं बस अड्डे से दो एक लोग उसे अस्पताल ले गये। जब तक घर में खबर पहुंचती, वह तो खतम हो चुका था। पता भी नहीं चल पाया कि उसने किस शहर के बस अड्डे पर क्या खाया था। अभी बेचारी शांति की राख भी ठण्डी नहीं हुई थी कि .. .. ..
मेरे सामने दोहरी दुविधा है। मैं संदीप की बीवी से पहली ही बार और वह भी कैसे दुखद मौके पर मिल रहा हूं। पता चला था संदीप की पत्नी बहुत ही खूबसूरत और साथ ही स्मार्ट भी है। शांति आंटी और अंकल भी हमेशा उसकी तारीफ करते रहते थे। मैं कल्पना भी नहीं कर पा रहा हूं कि इतनी अच्छी लड़की को शादी के सिर्फ़ साल भर के भीतर विधवा हो जाना पड़ा। क्‍या सोचती होगी वह भी कि पहले सास गयी और अब खुद का सुहाग ही उजड़ गया।
मेरा संकट है, मैं ऐसे मौकों पर बहुत ज्यादा नर्वस हो जाता हूं। मातमपुर्सी के लिए मेरे मुंह से लफ्ज़ ही नहीं निकलते। मुझे समझ ही नहीं आता कि क्या कहा जाये और कैसे कहा जाये। घबरा रहा हूं कि मैं उन लोगों का सामना कैसे करूंगा। एक तरफ अंकल हैं जो मुझे बहुत मानते हैं और इन दो महीनों में ही पत्नी और जवान बेटा खो चुके हैं और दूसरी तरफ़ संदीप की पत्नी है जिससे मैं पहली बार मिल रहा हूं।
इससे पहले कि मैं झुक कर अंकल के पैर छूता, अंकल ने बीच में ही रोक कर मुझे गले से लगा लिया है। शिकवा कर रहे हें कि मैं कितनी बार यहां आया और घर पर एक बार भी नहीं आया। मेरे पास कोई जवाब नहीं है और मैं झेंपी हुई हसीं हंस कर रह जाता हूं। देखता हूं इस बीच वे पहले की तुलना में बहुत कमज़ोर लग रहे हैं। आखिर दो मौतों का ग़म झेलना कोई हंसीं खेल नहीं। मैं संदीप या आंटी के बारे में कुछ कहने को होता हूं कि वे मुझसे पूछ रहे हैं बंबई के हालचाल और बाल बच्चों के बारे में। मैंने एक सवाल का जवाब दिया नहीं होता कि वे दूसरा सवाल दाग देते हैं। मैं खुद किसी तरह से बातचीत का सिरा उस तरफ मोड़ना चाहता हूं ताकि अफसोस के दो शब्द तो कह सकूं। बाउजी ने एकाध बार बात घुमाने की कोशिश भी की लेकिन मेहता अंकल हैं कि हंस-हंस कर इधर उधर की बातें कर रहे हैं। ठहाके लगा रहे हैं। तभी पारूल पानी की ट्रे ले कर आयी है। मैं उठ कर उसे हेलो कहता हूं। वह हौले से जवाब देती है। बेहद सौम्य और खूबसूरत लड़की। चेहरे पर ग़ज़ब का आत्मविश्वास। लेकिन हाल ही के दोहरे सदमे ने उसके चेहरे का सारा रस और नूर छीन लिया है। शादी के साल भर के भीतर उसकी जिंदगी क्या से क्या हो गयी। इतने अरसे में तो पति पत्नी एक दूजे को ढंग से पहचान भी नहीं पाते और .. .. ..।
तय नहीं कर पा रहा हूं बातचीत किस तरह से शुरू करूं। और कोई मौका होता तो कोई भी हलकी फुलकी बात कही जा सकती थी लेकिन इस मौके पर.. ..। तभी अंकल ने उसे फरमान सुना दिया है - अरे भई, दीपक को कुछ चाय नाश्ता कराओ। बरसों बाद हमारे घर आया है। और वे गाने लगे हैं - बंबई से आया मेरा दोस्त।
पारूल चाय का इंतज़ाम करने चली गयी है। अंकल ने बातचीत को अलग ही दिशा में मोड़ दिया है। वे कोई पुराना किस्सा सुनाने लगे हैं। मैं फिर संदीप के बारे में बात करना ही चाहता हूं कि पारुल चाय ले कर आ गयी और मेरा वाक्य अनकहा ही रह गया।
चाय पारुल ने खुद बना कर सबको दी है। अचानक सब खामोश हो गये हैं और कुछ देर तक सिर्फ़ चाय की चुस्कियों की ही आवाज़ आती रही। चाय खत्म हुई ही है कि पारुल ने अगला फरमान सुना दिया है - आप लोग खाना खा कर ही जायेंगे। पारुल ने जिस अपनेपन और अधिकार के साथ कहा है, उसमें मना करने की गुंजाइश ही नहीं है।
पारुल के चले जाने के बाद भी मैं देर तक बातचीत के ऐसे सूत्र तलाशता रहा कि किसी भी बहाने से सही, कम से कम दो शब्द अफसोस के कह ही दूं। दो एक बार आंटी और संदीप का ज़िक्र भी आया लेधिक बातचीत आये-गये तरीके से आये बढ़ गयी। में हैरान हो रहा हूं कि अभी तो आंटी और संदीप को गुज़रे महीना भर ही हुआ है, और अंकल ने उन्हें अपनी यादों तक से उतार दिया है।
अब बाउजी और मेहता अंकल की बातचीत अपनी निर्धारित गति से अपनी पुरानी लकीर पर चल पड़ी है और मैं उसमें कहीं नहीं हूं।
मैं मौका देख कर कमरे से बाहर आ गया हूं और कुछ सोच कर रसोई में चला गया हूं जहां पारुल खाना बनाने की तैयारी कर रही है। मुझे देखते ही पारुल ने उदासी भरी मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया है। मैं यहां भी बातचीत शुरू करने के लिए सूत्र तलाश रहा हूं। हम दोनों ही चुप हैं।
पारूल ने ही उबारा है मुझे - बंबई से कब आये आप?
आज सुबह ही। आते ही संदीप का पता चला तो.. .. .. ..।
मैंने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया है। पारूल भी चुप है। मैं ही बात का सिलसिला आगे बढ़ाता हूं - दरअसल, मैं आप लोगों की शादी में नहीं आ पाया था इसलिए आपसे नहीं मिल पाया था लेकिन संदीप के साथ मेरी खूब जमती थी। मैं आपसे मिल भी रहा हूं तो इस हाल में। मेरी आवाज भर्रा गयी है।
पारुल की आंखें भर आयी हैं। थोड़ी देर बाद उसी ने बातचीत का सिरा थामा है - मैं आपसे पहली बार मिल रही हूं लेकिन आप के बारे में काफी कुछ जानती हूं। पापा और संदीप अक्सर आपकी बातें करते रहते थे।
पारूल ने शायद जानबूझ कर बात का विषय बदला है।
मैंने भी बात को मोड़ देने की नीयत से कहा - मैं कुछ मदद करुं क्या?
मुझे लगा, यहां उसके साथ कुछ और वक्त बिताया जाना चाहिये।
-नहीं, बस सब कुछ तैयार ही है।
-आपने बेकार में तकलीफ़ की।
-इसमें तकलीफ़ की क्या बात, मुझे खाना तो बनाना ही था। और फिर मेरे घर तो आप पहली ही बार आये हैं। संदीप होते तो भी आप खाना खाते ही। उसकी आवाज़ भर्रा गयी है।
-नहीं यह बात नहीं है। दरअसल.. .... .. .. ।
उसने कोई जवाब नहीं दिया है।
-अब क्या करने का इरादा है। मैंने बातचीत को भविष्य की तरफ मोड़ दिया है।
-सोच रही हूं घर पर ही रह कर कमर्शियल आर्ट का अपना पुराना काम शुरू करूं। संदीप कब से पीछे पड़े थे कि सारा दिन घर पर बैठी रहती हो, कुछ काम ही कर लो। पहले मम्मी जी की बीमारी थी फिर ये दोहरे हादसे। मैं तो एकदम अकेली पड़ गयी हूं। मुझे क्या पता था कि जब संदीप की बात मानने का वक्त आयेगा, तब वही नहीं होगा .. .. .. ..।
-मेरी मदद की जरूरत हो तो बताना।
-बताऊंगी, अभी कब तक रहेंगे यहां?
-दसेक दिन तो हूं ही। आऊंगा फिर मिलने। बल्कि आप का उस तरफ आना हो तो..।
-घर से निकलना नहीं हो पाता। फिर भी आऊंगी किसी दिन।
तभी अंकल की आवाज आयी है - अरे भई, यहां भी कोई आपका इंतज़ार कर रहा है। थोड़ी सी कम्पनी हमें भी दे दो। मैं पारुल को वहीं छोड़ कर ड्राइंग रूम में वापिस आता हूं।
देखता हूं - अंकल ने बोतल और तीन गिलास सजा रखे हैं।
मुझे देखते ही उन्होंने पूछा है- अभी भी अपने बाप से छुप कर पीते हो या उसके साथ भी पीनी शुरू कर दी है ?
और उन्होंने एक ज़ोरदार ठहाका लगाया है।
-आओ बरखुरदार. तुम्हारी इस विजिट को सेलिब्रेट करें।
मुझे समझ में नहीं आ रहा, पैंसठ साल का यह बूढ़ा और कमज़ोर आदमी दोहरी मौतों के दुख से सचमुच उबर चुका है या इन ठहाकों, हंसी मज़ाक और शराब के गिलासों के पीछे अपना दुख जबरन हमसे छुपा रहा है। बाउजी इस वक्त खिड़की के बाहर देख रहे हैं।