Monday, August 11, 2008

बीसवीं कहानी - करोड़पति

इस समय भी वह लिफ्ट के पास खड़ा इशारे से किसी न किसी को अपनी तरफ बुला रहा होगा या फिर कैंटीन में बैठा अपनी ताजा रचना जोर - जोर से पढ़ रहा होगा। जिसने भी उससे आंख मिलायी, उसी की तरफ उंगली से इशारा करके अपनी तरफ बुलायेगा और भर्राई हुई आवाज़ में कहेगा, '' मैं आपको एक शब्द दूंगा। आप उसका मतलब किताबों में ढूंढना। किसी पढ़े लिखे आदमी से पूछना। मैं आपसे सच कहता हूं, उस शब्द से यह ऑफिस, यह शहर, यह दुनिया सब बदल जायेंगे, बेहतर हो जायेंगे। आप मुझे मिलना। अगर आपके पास वक्त न हो।'' यहां आते - आते उसकी सांस बुरी तरह फूल चुकी होगी और वह हांफने लगेगा। वहीं बैठ जायेगा। सांस ठीक होते ही फिर से उसका यह रिकॉर्ड चालू हो जायेगा। सामने कोई हो, न हो। तब तक बोलता रहेगा जब तक दरबान उसे खदेड क़र बाहर न कर दे, या भीतर न धकेल दे।

यह करोडपति है। असली नाम पुरुषोत्तम लाल। चपरासी है। आज कल सनक गया है। कभी खूब पैसे वाल हुआ करता था। खेती - बाड़ी थी। दो - तीन घर थे। शहर के कई चौराहों पर पान के खोखे थे। आजकल खाने तक को मोहताज है। अपने अच्छे दिनों में उसने सबकी मदद की। बेरोजगार रिश्तेदारों को काम धन्धे से लगाया। इसी चक्कर में सब कुछ लुटता चला गया। कुछ रिश्तेदारों ने लूटा और कुछ ऑफिस के साथियों ने निचोड़ा। अपने पैसों को वसूलने के लिये करोड़पति सबके आगे गिड़ग़िडाता फिरा। नतीजा यह हुआ कि वह सनक गया। बहकी - बहकी बातें करने लगा। जब पी लेता है तो और भी बुरी हालत हो जाती है। कभी गाने लगता है तो कभी जोर - जोर से बोलने लगता है।
भगवान जाने कितना सच है या न जाने लोगों की उडाई हुई है। एक दिन इसी सनक के चलते एक दिन ऑफिस के बाद घर जाते समय एक थैले में ढेर सारी चीजें, पेपरवेट, पंचिंग मशीन, कागज़, पैन - पैन्सिल जो भी मेजों पर पड़ा नजर आया, थैले में ठूंस लिया। शायद दिन में किसी से कहा - सुनी हो गयी होगी। उसी को जोर - जोर से कोसता हुआ बाहर निकला तो दरबान ने यूं ही पूछ लिया - थैले में क्या ले जा रहे हो करोड़पति? तो उसी से उलझ गया। ऊंच - नीच बोलने लगा। दरबान ने उसे वहीं रोक लिया और रिपोर्ट कर दी। करोड़पति सामान चोरी करके ले जा रहा है।
करोड़पति पकडा गया। सुरक्षा अधिकारी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि उसके खिलाफ मामला न बने, बेचारा पहले ही दुनिया भर का सताया हुआ है। लेकिन पता चला कि करोड़पति अव्वल तो पिये हुए है और दूसरे, ढंग से बात करने को तैयार नहीं है। कभी कहे कि ये सामान फलां साहब ने अपने घर पर मंगवाया है, तो कभी कहे कि - वह ऑफिस की नौकरी छोड़ रहा है। अब इसी सामान की दुकान खोलेगा। उसने अपने आप को यह कह कर और भी फंसा लिया कि - यह तो कुछ भी नहीं है, वह तो अरसे से थैले भर - भर कर सामान ले जाता रहा है।
उसके खिलाफ मामला बना और उसे सस्पैण्ड कर दिया गया। तबसे और सनक गया है।
मैले कुचैले कपडे, एकदम लाल आंखें, नंगे पैर, हाथ में पांच सात कागज़, दाढ़ी बढ़ी हुई। तब से रोज सुबह लिफ्ट के पास खड़ा सबको पुकारता रहता है। कोई उसके सामने नहीं पड़ना चाहता। वे तो बिलकुल भी नहीं जिन्होंने उसकी सारी पूंजी लूट कर उसकी यह हालत बना दी है।
उसकी सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि वह घर और बाहर दोनों ही जगह से फालतू हो गया है। घरवालों की बला से वह कल मरता है तो आज मरे। कम से कम उसकी जगह परिवार में किसी को तो नौकरी मिलेगी। उनके लिये तो वह अब बोझ ही है। ऑफिस में उसकी परवाह किसे है? वहां वह अकेला पागल ही तो नहीं। एक से एक पागल भरे पड़े हैं। कुछ हैं और कुछ बने हुए हैं। जो नहीं भी हैं वो सबको पागल बनाये हुए हैं।
कोई भी करोड़पति से बात नहीं करना चाहता। उसे देखते ही सब दायें - बायें होने लगते हैं। दुर - दुर करते हैं। कौन इस पागल के मुंह लगे। अगर कोई धैर्यपूर्वक उसकी बात सुने, उससे सहानुभूति जताये तो शायद उसके सीने का बोझ कुछ तो उतरे। लेकिन किसे फुर्सत?
जब उसकी इन्‍क्वायरी के लिये तारीख तय हुई तो यूनियन से उसका डिफेन्स तय करने के लिये कहा गया। यूनियन को भला ऐसे कंगले में क्या दिलचस्पी हो सकती थी। उन्होंने भी टालमटोल करना शुरु कर दिया। जब करोड़पति को उनके रुख का पता चला तो वह वहां भी गाली - गलौज कर आया - मुझे आपकी मदद की कोई जरूरत नहीं। मैं अपना केस खुद लड़ लूंगा। गुस्से में आकर उसने यूनियन से ही इस्तीफा दे दिया - चूंकि पुरषोत्तम लाल यूनियन का मेम्बर नहीं है, अत: यूनियन की तरफ से डिफेन्स उपलब्ध कराना संभव नहीं है।
मजबूरन ऑफिस ने ही उसके लिये डिफेन्स जुटाया और केस आगे बढ़ाना शुरु किया। लेकिन करोड़पति अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने को तैयार हो तो कोई क्या करे! कभी इनक्वायरी में नहीं आयेगा। आयेगा भी तो बात करने लायक हालत में नहीं रहेगा। अगर सारी स्थितियां उसके पक्ष में हों, वह आये, बात करने लायक हो, तो भी वह वहां कुछ ऐसा उलटा सीधा बोल आयेगा कि बात आगे बढ़ने के बजाय पीछे चली जाये - मैं एक - एक को देख लूंगा। सब मेरे दुश्मन हैं। मेरी बात ध्यान से नोट कर लो। मैं बाद में फिर आऊंगा। इस तरह की ऊटपटांग बातें करके लौट आयेगा।
इसी तरह ही चल रहा है करोड़पति। पता नहीं, खाना कहां से खाता है, पीना कहां से जुटाता है। इन दिनों उसे आधी पगार मिलती है जो पगार वाले दिन उसकी बीवी ले जाती है। कम से कम बच्चे तो भूखे न मरें। इस पागल का क्या!
संस्थान ने उसकी हालत पर तरस खा कर फिर से बहाल कर दिया है, अलबत्ता उसकी चार वेतन वृध्दियां कम कर दी हैं। उसे नौकरी में वापिस लिये जाने की एक वजह यह भी रही कि उसका ढंग से इलाज हो सके और एक परिवार बेवक्त उजड़ने से बच जाये। लेकिन हुआ इसका उलटा ही है। करोड़पति की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गयी है। काम करने लायक तो वह पहले कभी नहीं था, इधर उसने दो तीन नये रोग पाल लिये हैं। आजकल वह बात - बात पर इस्तीफा दे देता है। कभी उसे गाने का शौक रहा होगा, कुछेक फिल्मी गीत याद भी रहे होंगे। उन्हीं में से कुछ शब्द आगे पीछे करके ले आता है। टाइपिस्ट सीट पर बैठे भी नहीं होते हैं कि सिर पर आ धमकता है - '' इसे टाइप कर दो। अभी किशोर कुमार इसे गाने वाले हैं। वे स्टूडियो में इसकी राह देख रहे हैं। वे नहीं गायेंगे तो मैं खुद गाऊंगा।'' और वह वहीं शुरु हो जाता है। भर्राये हुए गले से करोड़पति गा रहा होता है और सब खी - खी हंस रहे होते हैं। पिछले हफ्ते उसे सस्‍पैन्शन की अवधि की बकाया रकम मिली है। उसी पैसे से पी जा रही दारू का नतीजा है यह।
अगर टाइपिस्ट यह तुकबन्दी टाइप करने से मना कर दे, कैन्टीन से चाय मिलने में तीन मिनट से ज्यादा लग जायें, कोई बिल एक ही दिन में पास न किया जाय तो वह तुरन्त इस्तीफा दे देता है। बेशक अगले दिन उसके बारे में भूल जाये और किसी और बात पर कोई नया इस्तीफा दे दे। कई बार उसके पांच - सात इस्तीफे जमा हो जाते हैं जिन्हें डायरी क्लर्क एक किनारे जमा करती रहती है। जहां तक उसके इलाज का सवाल है, करोड़पति को डॉक्टर के पास ले जाया जाता है, उसकी तकलीफ बतायी जाती है, दवा भी मिलती है, लेकिन खाने के लिये तो करोड़पति को एक और जनम लेना पडेग़ा।

करोड़पति लापता है। पिछले कई दिनों से न घर पहुंचा है और न ऑफिस ही। वैसे तो पहले भी वह कई बार दो - दो, चार - चार दिनों के लिये गायब हो जाता था, लेकिन जल्द ही मैले - कुचैले कपड़ों में लौट आता था। इस बार उसे गायब हुए महीना भर होने को आया है। उसका कहीं पता नहीं चल पाया है। इस बार पगार वाले दिन उसकी बीवी उसे ढूंढते हुए ऑफिस आई, तभी सबको याद आया कि कई दिन से करोड़पति को नहीं देखा। कई दिन से वह घर भी नहीं पहुंचा था। वैसे तो कभी भी किसी ने उसकी परवाह नहीं की थी, न घर पर न दफ्तर में। अब अचानक सबको करोड़पति याद आ गया था। बीवी को पगार वाले दिन उसकी याद आई थी, बल्कि जरूरत पड़ी थी कि आधी - अधूरी जितनी भी पगार है, करोड़पति से हस्ताक्षर करवा कर ले जाये। अगली पगार तक करोड़पति अपने दिन कैसे काटता था, क्या करता था यह उसकी सिरदर्दी नहीं थी। बेशक कर्जे वसूलने वाले भी पगार के आस - पास मंडराते रहते थे कि उसके हाथ में लिफाफा आते ही अपना हिस्सा छीन लें। लेकिन उसकी बीवी की मौजूदगी में कुछ भी वसूल नहीं कर पाते थे। अलबत्ता बीवी को ही डरा धमका कर सौ - पचास निकलवा पायें यही बहुत होता था। वे भी अब परेशान दिखने लगे थे। करोड़पति नहीं है अब क्या वसूलें और किससे वसूलें।
अब अचानक सबको याद आने लगा है कि - किसने करोड़पति को आखिरी बार कहां देखा था! किसी को हफ्ता भर पहले स्टेशन पर पूरी - भाजी खाते नजर आया था तो किसी ने उसे सब्जी मण्डी में मैले कुचैले कपड़े पहने भटकते देखा था। किसी का ख्याल था कि वह या बिलकुल वैसा ही एक आदमी थैला लिये शहर से बाहर जाने वाली एक बस में चढ़ रहा था। जितने भी लोग थे करोड़पति के बारे में अपने कयास भिड़ा रहे थे, कोई भी यकीन के साथ बताने को तैयार नहीं था। बल्कि कुछ लोग तो इतनी दूर की कौड़ी ख़ोज कर लाये थे कि तय करना मुश्किल था कि किसके कयास में ज्यादा वजन है। एक चपरासी को तो पूरा यकीन था कि पिछले हफ्ते रेलवे पुल के पास भिखारी जैसे किसी आदमी की जो लाश मिली थी, हो न हो वह करोड़पति की ही रही होगी। अलबत्ता यह खबर देने वाले के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि अगर वह करोड़पति की ही लाश थी तो उसने पहले खबर क्यों नहीं दी? ये और इस तरह की कई अफवाहें अचानक हवा में उठीं और गायब भी हो गयीं।
ऑफिस में तो उसकी मौजूदगी - गैर मौजूदगी महसूस ही नहीं की गई थी, लेकिन उसकी बीवी वाकई चिन्ता में पड़ गयी है। उसकी चिन्ता करोड़पति की पगार को लेकर है, जो उसे बिना करोड़पति के हस्ताक्षर के नहीं मिल सकती है। उसने ऑफिस से करोड़पति की गैर हाजिरी का प्रमाणपत्र ले लिया है और थाने में उसके गुमशुदा होने के बारे में रिपोर्ट लिखवा दी है। किसी तरह रोते - पीटते अपनी गरीबी की दुहाई देते हुए उसके गुमशुदा होने का प्रसारण भी दूरदर्शन पर करवा दिया है। लेकिन इस बीच न करोड़पति लौटा है न उसके बारे में कोई खबर ही मिली है।
तीन महीने तक इंतजार करने के बाद ऑफिस ने हर तरह की कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद संस्थान का मकान खाली करने का आदेश उसकी बीवी को दे दिया है। उसकी बीवी की सारी कोशिशों और अनुरोधों के बावजूद ऑफिस से करोड़पति का एक पैसा भी उसे नहीं मिल पाया है। इस बीच उसने करोड़पति की जगह नौकरी के लिये भी एप्लाई कर दिया है जिसे ऑफिस ने ठण्डे बस्ते में डाल दिया है।
करोड़पति की जगह नौकरी पाने के लिये उसे या तो करोड़पति का मृत्यु प्रमाणपत्र लाना पड़ेगा या उसके गुमशुदा होने की तारीख से कम से कम सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा।

8 comments:

जितेन्द़ भगत said...

रोचक !

विजय गौड़ said...

आपकी कहानियों की जो खूबी मुझे दिखाई देती है वह यही कि वे अपने कथ्य में जितनी सहज होती है, अंतर्वस्तु में उतनी सहज होती नहीं। हां, सामाजिक जटिलताओं का ताना बाना उसमें बहुत सहजता से दिखाई दे रहा होता। खासकर इस कहानी में तो ज्यादा प्रमाणिकता के साथ है।

रंजना said...

यह देख कर सबसे अधिक प्रसन्नता हुई की आपके कथ्य का नायक वह व्यक्ति है जिसे व्यक्ति की श्रेणी में कोई नही रखता.
बड़े ही सरल सहज ढंग से घटनाओं और मनोभावों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने.आभार.

नीरज गोस्वामी said...

अत्यन्त मार्मिक कहानी...न जाने कितने करोड़पति इस तरह लापता हो जाते हैं अपने सीधे पन और इमानदारी के कारण...क्या हम ही उन्हें गायब नहीं कर देते?
नीरज

शोभा said...

सूरज जी
हमेशा की तरह सुन्दर कथा लिखी है आपने। पढ़कर आनन्द आया। इतनी सुन्दर कथा के लिए आभार।

ghughutibasuti said...

रोचक कहानी है।
घुघूती बासूती.

सतीश पंचम said...

उस दिन आप से चैट करने के बाद आज फुर्सत से इसे पढा.......कहानी ने बांधे रखा। सशक्त रचना है।

इस word Verification को हटा दें , बिना मतलब का परेशान करता है.....टिप्पणी देने में आसानी होगी।

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर कथानक..
रोचक ताना-बाना..
बढ़िया रचना के लिये बधाई स्वीकारें.