Friday, April 24, 2009

उर्फ़ चंदरकला – 1991 की अश्लीलतम कहानी

ये कहानी 1976 की घटना पर 1991 में लिखी गयी थी और नवम्बर 91 में वर्तमान साहित्य में छपी थी। कहानी छपते ही हंगामा मच गया था। वार्षिक ग्राहकों ने अपना चंदा वापिस मांगा, देश भर में इसकी फोटोकॉपी करा के प्रतियां बांटी गयीं, गोष्ठियां हुईं, साल भर कहानी के पक्ष और विपक्ष में पत्र आते रहे। और मेरी लानत मलामत की जाती रही। कहानी का भूत अरसे तक हिन्दी जगत को सताता रहा। लीजिये, आप भी पढ़ कर अपनी राय बनाइये।

उर्फ़ चन्दरकला
दोनों वहां वक्त पर पहुंच गये हैं। अभी एन आर की अर्थी सजायी जा रही है। वहां खड़ी भीड़ में धीरे-धीरे सरकते हुए वे सबसे आगे जा पहुंचे और मुंह लटका कर खड़े हो गये। दोनों ऐसी जगह जा कर खड़े हो गये हैं, जहां चेयरमैन और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों की निगाह उन पर पड़ जाये। तभी सतीश ने आनंद को इशारा किया, दोनों आगे बढ़े और अर्थी पर फूल मालाएं रखने वालों के साथ हो लिये। ज्यादातर लोग चकाचक सफेद कुर्ते पायजामों में हैं। इन दोनों के पास कोई सफेद या डल कपड़े नहीं हैं, इसलिए रोज के ऑफिस वाले कपड़ों में ही चले आये हैं।
माहौल में बहुत उदासी है। रह-रह कर मिसेज एन आर, उनके छोटे लड़के और जवान लड़कियों की सिसकियों से माहौल और भारी हो जाता है। जब एन आर की मृत देह मंत्रोच्चारणों के साथ खुले ट्रक में रखी जाने लगी तो सतीश और आनंद ने भी आगे बढ़ कर हाथ लगा दिया। एन आर परिवार और दूसरों की रुकी हुई रुलाई फिर फूट पड़ी। सबकी तरह सतीश और आनंद भी अपनी उंगलियां आंखों तक ले गये, लेकिन वहां कोई आंसू नहीं है।
दोनों धीरे-धीरे खिसकते हुए भीड़ से बाहर आ गये। सतीश ने आनंद का हाथ थामा और बोला - मिसेज एन आर बिना मेकअप के कितनी अजीब लग रही हैं। अपनी उम्र से दुगुनी।
"अबे घोंचू, यही उनकी असली उम्र है। मेकअप से आधी लगती थी।" आनंद फुसफुसाया। तभी उसकी निगाह एन आर की बिलखती हुई बड़ी लड़की पर पड़ी। उसकी सफेद कुर्ते में से झांकती काली ब्रा की पट्टी पर नज़रें गड़ाये वह बोला," मुझसे तो इन लड़कियों का रोना नहीं देखा जा रहा। जी कर रहा है दोनों को सीने से लगाकर दिलासा दूं। पीठ पर हाथ फेर कर चुप कराऊं।" सतीश ने भी आंखों ही आंखों में लड़कियों के शरीर तौले और मायूस होते हुए कहा, "हां यार, एन आर इतनी खूबसूरत लड़कियों को यतीम कर गया। मुझसे भी उनका दुःख नहीं देखा जा रहा। एक तुझे मिले चुप कराने के लिए और एक मुझे।" उसने आनंद का हाथ दबाया और आदतन आँख मारी।
ऑफिस की सारी गाड़ियां, बसें सबको श्‍मशान घाट तक ले जाने के लिए खड़ी हैं। कॉलोनी तक वापिस भी छोड़ जाएंगी। आज की छुट्टी घोषित कर दी गयी है। सब लोग बसों की तरफ बढ़ने लगे।
बस में चढ़ने से पहले सतीश फिर फुसफुसाया," यार क्या करेंगे वहां? ….. सारा दिन बर्बाद जायेगा। यहां सबको अपना चेहरा दिखा ही चुके हैं। हाज़िरी लग गयी है। चल खिसकते हैं।"
" हां यार, वैसे भी मूड भारी हो गया है। चल, सिटी चलते हैं। वहीं दिन गुजारेंगे।"
उन्होंने देखा, और भी कई लोग बसों में चढ़ने के बजाये इधर-उधर हो गये हैं। मौका देखकर वे भी शव-यात्रा का काफिला शुरू होने से पहले ही फूट लिये।
एन आर के बंगले से काफी दूर आ जाने के बाद आनंद ने सिगरेट सुलगाते हुए पूछा,"क्या ख्याल है तेरा, एन आर की जगह उसकी फैमिली में किसे नौकरी दी जायेगी।"
"अरे इसमें देखना क्या, तय है। बड़ी वाली लड़की ही ज्वाइन करेगी। एन आर जीएम था भई। थर्ड इन रैंक, अब उसकी विडो इस उम्र में तो डिस्पैच क्‍लर्क बनने से रही।" सतीश ने दार्शनिकता झाड़ी।
" गुरु, मजा आ जायेगा तब तो। बल्कि मैं तो कहता हूं, जीएम के स्टैंडर्ड के हिसाब से तो दोनों लड़कियों को रखा जा सकता है। पर्सोनल मैनेजर अपना यार है। उससे कह कर इन्हें अपने सैक्शान में रखवा लेंगे।" आनंद ने मन ही मन लड्डू फोड़े।
"कुछ भी हो यार", सतीश फिर दार्शनिक हो गया, "आदमी की भी क्या जिंदगी है, यही एन आर कल तक कितनी बड़ी तोप था। अच्छे-अच्छों को नकेल डाल रखी थी, आज कैसा निरीह सा पड़ा था मुझे ...."
"मत याद दिला यार" आनंद ने तुरंत टोका, "मेरी आंखों से तो उसकी रोती हुई लड़कियों की तस्वीर ही नहीं मिटती। बेचारी लड़कियां, कभी जाएंगे उनके घर। अफसोस करने। पूछेंगे, हमारे लायक कोई काम हो तो .....।"
"हां यार, जाना ही चाहिये। आखिर इन्सान ही इन्सान के काम आता है।" आनंद उससे पूरी तरह सहमत हो गया।
तभी एक खाली ऑटो वहां से गुजरा। आनंद ने उसे रोका, बैठने के बाद सिटी की तरफ चलने के लिये कहा।
"कल रात तू कितना जीता?" सतीश ऑटो में पसरते हुए बोला।
"तीन सौ के करीब, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ, इस महीने कुल मिला कर घाटे में ही चल रहा हूँ।"
"जो रकम तू हार चुका है, उसे गिन ही क्‍यों रहा है। वो तो वैसे ही तेरे हाथ से जा चुकी।" सतीश ने अपनी नरम गुदगुदी हथेलियों में उसका हाथ दबाया,"चल आज तेरी जीत ही सेलिब्रेट की जाये। सारा दिन कहीं तो गुजारना ही है।"
"तेरे पास कितने हैं?" आनंद ने सतीश की जेब की थाह लेनी चाही।
"होंगे सौ के आस-पास" सतीश ने लापरवाही जतायी।
सिटी पहुंच कर दोनों मेन मार्केट की तरफ चले। बाजार की रौनक से आंखें सेंकते हुए। जब सतीश को कोई दर्शनीय चीज़ नज़र आ जाती तो वह आनंद का हाथ दबा देता। आनंद की निगाह पहले पड़ती तो वह सतीश को कोंच देता। काफी देर तक वे यूं ही मटरगश्ती करते रहे।
तभी सड़क के किनारे बने एक पार्क के बाहर रेलिंग के सहारे खड़ी एक लड़की ने सतीश को आँख मारी। सतीश सकपका गया। दुनिया का आठवां आश्चर्य। आज तक तो यह काम वही करता रहा है। उसे आँख मारने वाली कौन सी अम्मा पैदा हो गयी। वह सांस लेना भूल गया। दोनों तब तक पाँच सात कदम आगे बढ़ चुके थे। सतीश ने हलके से मुड़ कर देखा, लड़की की निगाह अभी भी इस तरफ है। लड़की फिर मुस्कुरायी। सतीश ने तुरंत आनंद का हाथ दबाया," गुरु, रुक जरा। माल है। खुद बुला रही है।"
आनंद ने शायद उसे देखा नहीं है। दोनों रुक गये। सतीश ने दिखाया, " वे रेलिंग के सहारे खड़ी है।"
" हां यार, लगती तो चालू है। करें बात?" आनंद की धड़कन भी तेज हो गयी।
"पर उसे दिन दहाड़े ले जायेंगे कहां?" सतीश ने आनंद की उंगलियां अपनी उंगलियों में फंसा लीं।
" पहले देख तो लें। कैसी है? कितना मांगती है? जगह तो बाद में भी तय कर लेंगे। चल पास जाते हैं।"
" तू जा, उससे बात कर।"
" अबे पौने आठ, आंख उसने तुझे मारी है। आगे मुझे कर रहा है।" लड़की अभी भी खड़ी इन दोनों की हरकतें देख रही है।
दोनों उससे थोड़ी दूर जा कर खड़े हो गये। आनंद ने सिगरेट सुलगा ली और सतीश खुद को व्यस्त दिखाने के लिए रेलिंग के सहारे जूते का तस्मा खोल कर बांधने लगा।
लड़की ने दोनों की तरफ देखा और बेशरमी से मुस्कुरायी। सतीश ने उसे आँख के इशारे से बुलाया। लड़की तुरंत बगीचे के अंदर चली गयी और उसे अपने पीछे पीछे आने का इशारा किया।
भीतर जा कर वह एक खाली बैंच पर बैठ गयी। दोनों उसी बैंच पर उससे हट कर बैठ गये। देखा, लड़की ठीक-ठाक है। उन्नीस बीस की उम्र। सस्ती साड़ी, प्लास्टिक की चप्पल, उलझे बाल। शायद कई दिन से नहायी भी न हो।
" चलेगी?" आनंद ने कश लगाते हुए पूछा।
" कित्ती देर के वास्ते?"
" दिन भर के लिए" इस बार सतीश बोला।
" जगा नहीं है अपुन के पास। तुमको इंतजाम करना पड़ेगा" लड़की ने स्पष्ट किया।
" कर लेंगे, पहले तू पैसे बोल।"
" दोनों के वास्ते सौ का पत्ता लगेगा, मंजूर हो तो बोलो।"
" सौ ज्यादा है। कम कर" सतीश ने उसे नज़रों से तौला।
" अस्सी दे देना और खाना खिला देना बस्स।" वह सतीश की आंखों में लपलपाती लौ देख कर बोली।
" पचास मिलेंगे, चलना हो तो बोल" सतीश अपनी औकात पर आ गया।
लड़की ने मना कर दिया, " पचास कम है। सत्तर दे देना।"
दोनों उठ गये और गेट की तरफ बढ़ने लगे। सतीश आनंद से पूछना ही चाहता था कि सत्तर ठीक हैं क्या, इससे पहले ही लड़की इनके पीछे लपकी, "चलो सेठ।"
सतीश मुस्कुराया। सौदा महंगा नहीं है। दिन भर के लिए दोनों के हिस्से में पच्चीस-पच्ची़स ही आयेंगे। आनंद से पूछा," गुरु, तय तो कर लिया। अब इसे ले जायें कहां? घर तो इस समय ले जा नहीं सकते। आज छुट्टी की वजह से पूरी कालोनी आबाद है। कोई भी चला आयेगा। होटल में ले जाने लायक यह है नहीं।"
" तू ही तो मेरे पीछे पड़ गया था। अब ले भुगत।" दोनों को लगा, बेवक्त की दावत कुबूल कर बैठे हैं। लड़की अभी भी खड़ी इनके इशारे का इंतजार कर रही है।
आनंद ने घड़ी देखी, साढ़े ग्या़रह, " चल, पिक्चर चलते हैं पहले। इस शो में हॉल खाली होते हैं। बाकी बाद में देखेंगे।"
सतीश ने लड़की से कहा, " चलो, पहले फिल्म देखेंगे।"
लड़की लाड़ से बोली, " पहले कुछ खिला दो सेठ, कल से एक कप चा भी नहीं पी है।"
आनंद ने अहसान जताया, " चल पहले कुछ खा ले, नहीं तो चिल्लायेगी।" वे एक सस्ते़ से रेस्तरां की तरफ बढ़ गये।
सिनेमा हॉल में बहुत भीड़ नहीं है। दोनों ने उसे अपने बीच वाली सीट पर बिठाया। अँधेरा होते ही दोनों चालू हो गये। दोनों को ही लगा, लड़की मजबूत है। वह भी खा पी कर मूड में आ गयी है। दोनों ने अपना एक एक हाथ उसके ब्लाउज में खोंस लिया। पसीने और मैल से उनके हाथ चिपचिपाने लगे। लेकिन वे लगे रहे। कभी सतीश उसे भींच लेता है तो कभी आनंद चूमने लगता है। अब उनके लिए हॉल में बैठना मुश्किल हो गया है। आस-पास बैठे लोग भी महसूस कर रहे हैं, असली फिल्म तो यहीं चल रही है। तभी धींगामुश्ती में लड़की का ब्लाउज चर्र से फट गया। लड़की जोर से चिल्ला पड़ी, "हाय, मेरा ब्लाउज फाड़ दिया।" दोनों सकपका गये। तेजी से अपने हाथ खींचे। उन्हें उम्मीद नहीं थी, वह इतनी जोर से बोल पड़ेगी। आस-पास वाले हँसने लगे और सीटियां बजाने लगे। दोनों खिसिया कर एकदम बाहर की तरफ लपके। लड़की को भी बाहर आना पड़ा।
बाहर निकल कर दोनों बाथरूम में घुस गये। सतीश बोला, "यार, माल तो पटाखा है एकदम गर्म कर दिया साली ने। "
"हां यार, अब अंदर तो नहीं बैठा जा रहा। क्या करें?"
"एक तरीका है। ऑटो लेकर किले की तरफ निकल चलते हैं। वहां का रास्ता एकदम सुनसान है। घनी झाड़ियां भी हैं। वहीं चलते हैं।"
" हां, यही ठीक रहेगा।"
दोनों ने बाहर निकल कर लड़की को पीछे आने का इशारा किया। ऑटो तय करके उसमें बैठ गये और लड़की को बुला लिया। अभी ऑटो बाज़ार में ही था कि आनंद ने ड्राइवर को एक मिनट के लिए रुकने के लिए कहा। वह लपक कर गया। जब वापिस लौटा तो उसके हाथ में एक खाकी लिफ़ाफ़ा था। लिफाफे की शेप देखकर सतीश मुस्कुराया। लड़की दोनों के बीच दुबकी बैठी है। ब्लाउज ज्यानदा फट गया है उसका। साड़ी कस के लपेट रखी है उसने।
किले वाली सड़क पर शहर से काफी दूर आ जाने के बाद उन्होंने आटो रुकवाया। बिल्कुल सुनसान जगह है यह। पहले आनंद ऑटो में बैठा रहा और सतीश लड़की को लेकर झाड़ियों के पीछे निकल गया। जाने से पहले उसने लिफाफे में ही 'हाफ' खोल कर गला तर कर लिया है।
सतीश के आने तक आनंद घूँट भरता रहा और सिगरेटें फूँकता रहा। सतीश ने आते ही मुस्कुरा कर आनंद की तरफ देखा और उसका कंधा दबाया। अब सिगरेटें फूंकने की बारी सतीश की है। आटो ड्राइवर इतनी देर से इन सवारियों की हरकतें देख कर मुस्कुरा रहा है। सतीश के लौटने पर बेशर्मी से बोला, " साब मैं भी एक गोता लगा लूं गंगा में।"
सतीश और आनंद ने एक दूसरे की तरफ देखा – यह तीसरा भागीदार कहां से पैदा हो गया। अब तक लड़की भी बाहर आ गयी है।
अजीब स्थिति है। ड्राइवर को 'हां' कैसे कहें और अगर मना करते हैं तो एक तो वह इस मामले का राज़दार है और उन्हें वापिस भी जाना है। लफ़ड़ा कर सकता है। दोनों ने आंखों ही आंखों में इशारा किया। इसे भी हो आने देते हैं। अपना क्या जाता है। तभी सतीश बोला, " बीस रुपये लेगेंगे।" ड्राइवर ने एक पल सोचा, फिर बोला "चलेगा। "

सतीश लड़की को एक किनारे ले गया और उसे डरा दिया, " ड्राइवर धमकी दे रहा है। उसे भी निपटा दे। नहीं तो वापिस नहीं ले जायेगा। जा। चली जा। यहां और कोई ऑटो भी नहीं मिलेगा।" लड़की सचमुच डर गयी है। वह झाड़ियों की तरफ लौट गयी। ड्राइवर उसके पीछे लपका। उनके जाने के बाद सतीश ने कुटिलता से मुस्कुरा कर आनंद की तरफ देखा, " कैसी थी?"
" साली गंदी थी, लेकिन थी जोरदार। तुझे कैसी लगी?"
"वाह गुरु, मेरा पसंद किया हुआ माल और मुझी से पूछ रहा है, कैसी थी।"
वह हंसने लगा, "बहुत दिनों बाद ऐसी चीज़ मिली है। लगता है, ज्यादा दिनों से धंधे में नहीं है।" उसने कयास भिड़ाया। " अब क्या करें, सिर्फ ढाई बजे हैं अभी।" आनंद को अब कोई मलाल नहीं है। " चल किले तक हो कर आते हैं। वहीं देखेंगे।"
" इसे रात को भी रखना है क्या?"
" वो तो यार, बाद की बात है। पहले यह तो तय हो, अब इसका क्या करना है। अभी पाँच मिनट में झाड़ियों से कपड़े झाड़ती निकल आयेगी हमारी अम्मा।"
आनंद ने दाँत दिखाये, " अभी से तो अम्मा मत बना यार उसे, अभी तो दूध पीती बच्ची है। कुंवारी कली।" सतीश ने टहोका मारा।
"अबे लण्डूरे, अभी खुद ही तो उसका दूध पी के आ रहा है और कहता है, दूध पीती बच्ची है। आनंद ने धक्का मारा, "पता नहीं तेरे जैसे कितने बिगड़े बच्चों को दूध पिला चुकी है।"
तभी ड्राइवर कपड़े झाड़ता हुआ बाहर आया। उसका चेहरा चमक रहा है। तब तक लड़की भी बाहर आ गयी है। एकदम पस्त। साड़ी के भीतर से उसका फटा हुआ ब्लाउज और गुलाबी गोलाई नजर आ रहे हैं। ड्राईवर ने अपनी सीट पर जमते हुए पूछा," अब कहां चलना है साहब?"
" किले की तरफ ले चलो।" सतीश ने आदेश दिया। अब उसके सामने तकल्लुफ करने की गुंजाइश नहीं है। आनंद ने लड़की के गले में बांह डाल कर उसे भींच लिया और चूमते हुए बोला, " थक गयी है क्या जाने मन।" लड़की ने सिर हिलाया," नहीं तो।"
सतीश उसकी जांघ पर हाथ फेरता हुआ बोला, "तूने अपना नाम तो बताया ही नहीं, क्या नाम है तेरा?"
लड़की अपना मुंह सतीश के कान के पास ले जा कर फुसफुसायी "चमेली।"
"बदन से तो तेरे बदबू आ रही है और नाम चमेली है।" सतीश उसके सीने पर हाथ मारता हुआ हँसने लगा, "हम तुझे चंदरकला कह कर बुलायेंगे। चलेगा न।"
यह सतीश की पुरानी आदत है। वह हर किराये की लड़की को इसी नाम से पुकारता है। वह चंद्रकला नहीं कह पाता। किले पर पहुंच कर उन्होंने ऑटो छोड़ दिया। ड्राइवर को पैसे देते समय सतीश ने बीस रुपये काट लिये। लड़की को ले कर पहले दोनों किले के भीतर घूमते रहे। उसके साथ मस्ती करते रहे। फिर किले के पिछवाड़े की तरफ निकल गये। यह जगह एकदम सुनसान है। चलते-चलते वे काफी दूर जा पहुंचे, जहां बहुत बड़े-बड़े पत्थर हैं। यह जगह सुरक्षित लगी उन्हें। वे पत्थरों के पीछे उतर गये।
आनंद वहीं एक पत्थेर से टिक कर लेट गया और लड़की को अपने पास बिठा लिया। सतीश घास पर लेट गया। लेटे लेटे वह ऊंचे सुर में गाने लगा। अचानक वह उठा और लड़की से बोला," चल चंदरकला, अब तू एक गाना सुना। "
" मुझे गाना नहीं आता।" वह इतराते हुए बोली।
" आता कैसे नहीं, धंधेवालियों को गाना, नाचना सब कुछ आना चाहिए। चल गाना सुना।"
लड़की गाने लगी। उसे सचमुच गाना नहीं आता। यूं ही रेंकती रही थोड़ी देर। सतीश और आनंद ताली बजाने लगे। उसकी हिम्मत बढ़ी। उसने और जोर से अलापना शुरू कर दिया, लेकिन जल्दी ही हांफ गयी। आनंद ने सिगरेट निकाली तो लड़की बोली, "एक मुझे भी दो।" आनंद ने डिब्बी माचिस उसी को दे दी और कहा, "ले खुद भी पी और हमें भी पिला।" लड़की ने बारी बारी से दोनों के मुंह में सिगरेट लगा कर सुलगा दी। खुद भी पीने लगी।
" सिगरेट ही पीती है या शराब भी?" सतीश ने धुंआ छोड़ते हुए पूछा।
लड़की ने आनंद के पास रखे हॉफ की तरफ देखा और सतीश की नाक पकड़कर बोली, " कोई पिला दे तो पी लेती हूँ।"
सतीश ने उसे पकड़कर अपने पास बिठा लिया और बोतल उसे दे दी, " ले मेरी जान, जितनी चाहे पी पिला।"
लड़की ने तीन-चार घूँट खींचे। फिर बोतल सतीश के मुंह से लगा दी। सतीश को अचानक खांसी आ गयी तो लड़की जोर-जोर से हंसने लगी। तभी सतीश बोला, " चल नाच के दिखा।"
वह नखरे करने लगी। सतीश ने उसे पकड़ कर खड़ा कर दिया और उसे जबरदस्ती नचाने लगा। आनंद भी उठ बैठा। दोनों ताली बजाने गाने लगे। लड़की हाथ पैर मारने लगी। उसे नशा होने लगा है। आनंद चिल्लाया, "ऐसे नहीं, ढंग से नाच। जरा तेज कदम उठा।
लड़की अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन नाचना उसके बस की बात नहीं है। तभी सतीश लड़की के पास आया और उसकी साड़ी खोलने लगा। लड़की एकदम रुक गयी और उसे मना करने लगी। सतीश ने पुचकारा, "चंदरकला डार्लिंग, कपड़े उतार कर नाच। खूब मजा आयेगा।"
लड़की एकदम बिफर गयी, " मैं नंगी नहीं नाचूंगी।" सतीश ने कस के उसके बाल पकड़ लिए, "साली प्यार से मना रहा हूँ नाच, फिर भी नखरे कर रही है।" लड़की बिगड़ गयी है, " देखो सेठ, खाली धंधे के वास्ते मैं आई इधर। फालतू परेशान नईं करने का। एक तो इत्ता कम पइसा दे रये और उप्पर से लफड़ करने कू मांगते।" उसने अपनी साड़ी कस के पकड़ ली और सतीश का हाथ झटक रही है। उसके बाल भी भी सतीश के हाथ में हैं।
तभी आनंद ने लपक कर उसे सतीश की पकड़ से छुड़वाया। प्यार से थपथपाते हुए उसे दस का नोट देते हुए बोला, " ले ये नाचने के पैसे अलग से ले। अब तो नाच।" लड़की अभी भी गुस्से में है। दस का नोट हाथ में लिए तय नहीं कर पा रही, क्या। करे।
आनंद ने फिर पुचकारा, " यहां कोई नहीं आयेगा। और फिर हम से क्या शरम?"
लड़की अब कातर निगाहों से दोनों की तरफ देख रही है। इससे पहले कि सतीश दोबारा उसके बाल पकड़ने के लिए आगे बढ़े, उसने कपड़े उतारने शुरू कर दिये। पैसे आनंद को पकड़ा दिया, "बाद में दे देना।"
दोनों पत्थरों पर बैठ गये और फिर से गाने लगे। सतीश ने बची खुची शराब भी उसे पिला दी। दोनों देर तक शोर मचाते रहे। सतीश फिर उठ कर उसके साथ लचकने लगा। कभी उसे गोल-गोल घुमाने लगता तो कभी उसे ऊपर उठाने की कोशिश करता, लेकिन उसका वज़न संभाल न पाता। थोड़ी देर बाद वह खुद तो थक कर बैठ गया, लेकिन उसने लड़की को बैठने नहीं दिया। लड़की नाच-नाच कर बेदम हुई जा रही है। इधर दोनों चिल्लाये जा रहे हैं - "और तेज नाच ... और मटक ... और उछल ... और जोर लगा के ....।"
आखिर लड़की एकदम निढाल हो कर पड़ गयी। वह पसीना-पसीना हो रही है। काफी देर तक यूं ही लेटी रही। आनंद ने एक सिगरेट सुलगायी और उसके होठों से लगा दी।
" थक गयी है क्या? " वह पसीने से चिपचिपाते उसके बदन पर हाथ फेरता हुआ बोला। लड़की ने आंखें खोले बिना सिर हिलाया - हां। आनंद ने लड़की को अपनी गोद में बिठा लिया और प्यार करने लगा। थोड़ी ही देर में वह उसे लेकर पत्थरों की ओट में चला गया। वापिस आने के बाद आंनद ने सतीश से पूछा, "जाता है क्या उसके पास? अभी वहीं है।" सतीश मुस्कुराते हुए उठा और बोला, " जैसी आज्ञा महाराज – और धीरे-धीरे जाता हुआ पत्थरों के पीछे गुम हो गया। उसे गये हुए अभी थोड़ी ही देर हुई है कि लड़की के चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी। आनंद लेटा रहा। तभी लड़की नंगी भागती हुई आनंद के पास आयी और बड़बड़ाने लगी, " मुझे पता होता, एइसा गलीच आदमी है ये तो मैं आतीच नई। बिलकुल हैवान है। कित्ता परेशान करता है।" उधर सतीश के चीखने की आवाजें आ रही हैं। " इधर आ ओ चंदरकला, एक बार आ तो सही।" आनंद मुस्कुराया। तो सतीश आज फिर छोटी लाइन पर गाड़ी चलाना चाहता है या और कोई मांग रख बैठा है। उसे अच्छी तरह पता है, हर लड़की इस तरह के कामों के लिए आसानी से तैयार नहीं होती, फिर भी बाज नहीं आता वह। वह अभी भी चिल्ला रहा है, "आनंद जरा भेजना चंदरकला को। उससे कह, अब बिल्कुल तंग नहीं करूंगा।" लड़की ने कपड़े पहनने शुरू कर दिये हैं। वह अभी भी बोले जा रही है - पहले मेरा ब्लाउज फाड़ा, फिर कपड़े उतारे अब गलत-सलत करने को बोलता हैं, छी: एकदम जानवर की माफिक है तुम्हारा सेठ। लाओ, एक सिगरेट दो। साला मूड खराब कर दिया हलकट ने।"
आनंद ने उसे सिगरेट दी और सतीश के पास जाने के लिए कहा। अब वह किसी कीमत पर जाने के लिए राज़ी नहीं है। सतीश अभी भी आवाजें दिय जा रहा है। आनंद ने बड़ी मुश्किल से लड़की को सतीश के पास इस शर्त पर भेजा कि अब अगर वह जरा भी गलत हरकत करे तो फिर कभी मत जाना उसके पास। वह राजी नहीं है। बड़ी मुश्किल से गयी। एक तरह से ठेल कर भेजा आनंद ने।
तीनों जब किले से बाहर निकले तो धुंधलका हो रहा है। चाय पीते-पीते उन्होंने सात बजा दिये। वापिस चलने से पहले सतीश ने आनंद से पूछा, "रात भर रखने के बारे में क्या ख्याल है? "
आनंद ने कहा, "पहले इसे पूछते हैं, जाती भी है या नहीं। लड़की ने साफ मना कर दिया, "नई जाना मेरे कू। कित्ता हैरान किये तुम लोग। मेरा हिसाब कर देवो और वहीं छोड़ देना मुजे।" सतीश ने पुचकारा, "नाराज नहीं होते जाने मन। चल तुझे बढ़िया खाना खिलायेंगे और दारू भी पिलाएंगे।" लगता है, अभी उसका मन नहीं भरा।
दारू और खाने की बात सुन कर लड़की सोच में पड़ गयी है। कुछ सोच कर बोली, "पर मेरे कू फिर परेशान किया तो?
"नहीं करेंगे, बस कहा ना।" आनंद ने दिलासा दिलाया।
" रात का पूरा सौ का पत्ता लगेगा। एक पैसा कमती नई।" लड़की ने फैसला कर लिया। सतीश ने फिर पचास से शुरू किया। आखिर सौदा एक सौ तीस में पटा। दिन के मिला कर। दस उसे अलग से मिले हैं।
आनंद ने ऑटो तय किया और कालोनी तक चलने के लिए कहा। आनंद ने पूछा, "ले जायेंगे कैसे?"
सतीश मुस्कुराया, " वही अपना ऑपरेशन बुरका।"
यह उनकी आजमायी हुई और सफल तरकीब है। जब भी रात को लड़की लानी होती है, लड़की तय कर लेने के बाद दोनों में से एक लड़की के साथ अंधेरे में इंतजार करता है और दूसरा असग़र को लेने चला जाता है। वह इनका खास दोस्त और कभी-कभी का पार्टनर है। वह अख़बार में लपेट कर अपनी बीवी का बुरका ले आता है। बुरके में लड़की सबके साथ घर के अंदर सुरक्षित पहुंच जाती है। बाद में बुरका पहन कर आनंद या सतीश असग़र के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। लड़की सुबह जल्दी ही बाहर कर दी जाती है।
सारा रास्‍ता लड़की सतीश से नाराज बैठी रही। सतीश ने दो-चार बार छेड़खानी करने की कोशिश की। लेकिन वह ऊंघती बैठी रही।
आपरेशन बुरका शुरू होते ही सतीश खाना और शराब लेने बाजार की तरफ निकल गया। आनंद असग़र और लड़की को लेकर चला।
दोनों ने असग़र से बहुत कहा, आज की दावत में शरीक होने के लिए। लेकिन असग़र ने आँख दबा कर मना कर दिया, "आज नहीं।" अलबत्ता जल्दी-जल्दी उसने एक दो पैग गले से नीचे उतार लिये।
सतीश बुरका ओढ़े जब असग़र को छोड़ने गया तो आनंद ने लड़की को साबुन न दे कर नहाने के लिए कहा। उसने घर के दरवाजे खिड़कियां बंद कर दिये। बत्ति्यां बुझा दीं। सिर्फ टेबल लैम्प लगा कर जमीन पर रख दिया। दरियां बिछा कर खाना भी जमीन पर लगा दिया। नहाने के बाद तीनों खाने-पीने बैठे।
लड़की अब बिल्कुल खामोश है। दोनों की हरकतों, शरारतों का कोई जवाब नहीं दे रहीं। जो भी गोद में बिठाता है, बैठ जाती है। जूठा खाते-खिलाते हैं, खा लेती है। धीरे-धीरे उसे नशा होने लगा है। वह लुढ़कने लगी है। बहकने लगी है। इन दोनों को भी चढ़ गयी है। नशे में इन्हें लड़की बहुत सुंदर लगने लगी है। दोनों उसकी तारीफ किये जा रहे हैं।
बत्ती बंद करते लड़की को इतना होश जरूर है कि उसने पूरे पैसे ले लिये और तीन-चार बार गिन कर अपने कपड़ों में छुपा कर लिए।
वे कब सोये, उन्हें पता ही नहीं चला। अचानक रात को नशा टूटने पर सतीश की नींद खुली। उसने घड़ी देखी, साढ़े तीन। आनंद और लड़की बेसुध सोये पड़े हैं। सतीश उठा और उसने झिंझोड़ कर लड़की को जगाया, " उठ, उठ चंदरकला, जल्‍दी कर।"
लड़की अभी पूरी तरह नींद में है। वह कुनमुनायी और फिर सो गई। सतीश ने उसे फिर झिंझोड़ा, लड़की आंखें मलते हुए उठी और पूछा, "क्या है सेठ", सतीश दबे स्वर में बोला, " फटाफट कपड़े पहन और फूट ले।" लड़की नशे और नींद की वजह से बैठ भी नहीं पा रही। वह फिर लेट गयी। सतीश ने फिर झिंझोड़ा उसे और एकदम खड़ा कर दिया। लड़की समझ नहीं पायी, यह क्या हो रहा है। उसने सतीश का हाथ पकड़ कर उसकी घड़ी में वक्त देखा। वह परेशान हो गयी है। आधी रात को सात-आठ किलोमीटर कैसे जायेगी। सतीश अभी भी हड़बड़ा रहा है, " जल्दी कर, जल्दी कर," उसने सतीश से थोड़ी देर और रुकने देने के लिए कहा, लेकिन सतीश ने उसका हाथ पकड़कर उसके कपड़े पैसे उसे थमा दिये और उसे नंगी ही दरवाजे से बाहर कर दिया। उसकी चप्पलें उठा कर बाहर फेंक दीं। लड़की को झटका लगा, यह हो क्या रहा है। कुछ समझ नहीं पायी वह। आखिर बोली," जाती हूँ सेठ, ऑटो के लिए पन्द्रह-बीस रुपये तो दे दो।" सतीश भुनभुनाया, "नहीं, नहीं अब एक पैसा भी नहीं मिलेगा। चल फूट। "
लड़की अभी भी आधी नींद में, कुछ और पैसों की उम्मीद में दरवाजे पर खड़ी है। सतीश ने फिर डपटा, " जाती है या नहीं।"
" कुछ तो और दे दो।"
सतीश ने जवाब में उसे कस के एक लात जमायी और भड़ाक से दरवाजा बंद कर दिया।

6 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ज़िन्दगी बहुत सुन्दर है, पर अफ़सोस कि बहुत अश्लील भी है. और इतनी अश्लील है. तो जब ज़िन्दगी ही इतनी अश्लील है तो कहानी के अश्लील होने पर बवाल क्यों? छोड़िए, बवालियों की फ़िक्र.

मुनीश ( munish ) said...

I am commenting without reading and my verdict is clear'This is going to be a record hit' because of cleverly crafted title of the post. Now.....silence...im going to read it. chupp....padhne de ..

अविनाश वाचस्पति said...

चलिए आपकी कहानी को पढ़कर
सूरज की नई किरणों से पता चला है
जो श्‍लील नहीं होता
वो अश्‍लील होता है
और अश्‍लील क्‍या होता है
जो पसंद तो आता है
मन भी करता है कि
पढ़ें बार बार, हर बार
पर कोई जान न पाये।

चाहता हैं अधिकतर
यही सब करना
पर
जाहिर होने से बचना
आपने प्रकट भी किया
पर प्रकट भी नहीं हुए
काम आपने विकट किया


संकट का काम
आपने नहीं किया
आपने तो लिखा
पर आपके लिखे को पढ़ना
और यह जाहिर भी हो जाये
कि हमने पढ़ भी लिया है
सबसे विकट संकट है
मैं इस संकट से कटा नहीं
पढ़ लिया और खिसका भी नहीं।

सच आपने उधेड़ दिया
मैंने उसे बुना भी नहीं
कलम सब कहती है
पर उसे मानना
सच को स्‍वीकारना
यदि सब शुरू करें


मेरे विचार से
पढ़ने के बाद न मानना
कि मैंने पढ़ा है
सबसे अधिक अश्‍लील है
जिसने पढ़कर मान लिया
वो सबसे सुशील है।

DUSHYANT said...

wonderful story..fir fir padhtaa hun..

shama said...

A well crafted story!

ashok andrey said...

Suraj prakash jee aapki kahaani padi laga jaise kisi ne deemag ke saare darwaajon ko tej aandhee ki tarah bhadbhadaa diye hain kahani ka prastutikaran behtreen hai aadmi kitne roop badalta hai yahee is kahani ki visheshta hai is lajwaab kahani ke liye mai aapko badhai detaa hoon.